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तुलसी मठ में मनाया गया भव्य अन्नकूट महोत्सव, जानें क्या है अन्नकूट का इतिहास?

 

स्वाभिमान टीवी, डेस्क। अलखनाथ मंदिर के पास स्थित तुलसी स्थल शनीवार को भव्य अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया गया। महोत्सव की शुरूआत भगवान भव्य संगीत से हुई। जिसके बाद भक्तों मे प्रसाद बांटा गया।

तुलसीमठ के महंत नीरज नयन दास ने बताया कि आज तुलसी मठ में गोवरर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया जा रहा है। यह प्रकृति के संदर्भ में एक उत्सव होता है। इसमें विशेष रूप से अन्न का महत्व है। किसी व्यक्ति या समाज के लिए जिसे भी आवश्यकता है, उसे अन्न का दान करना और समाज की सेवा करना इसका उद्देश्य है। यह उत्सव अनंत काल से यह मनाया जा रहा है। जोकि इस साल भी धूत-धाम से मनाया जा रहा है। यह 4 दिवसीय कार्यक्रम था। सबसे पहले हनुमान जयंती का कार्यक्रम हुआ और आज अन्नकूट महोत्सव है।

लंबे समय से मनाया जा रहा है उत्सव

महंत नीरज नयन दास ने बताया कि तुलसी मठ का हजारों सालों का इतिहास है। अन्नकूट शास्त्रो में वर्णित महोत्सव है। जब से तुलसी मठ का निमार्ण हुआ है। तब से अन्नकूट महोत्सव मनाया जा रहा है। इस का निमार्ण तुलसी दास बाबा से पहले हुआ था। इससे आप समझ सकते है कि हजारो साल पुराना यह महोत्सव है।

क्या है अन्नकूट का इतिहास

गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट या गोवर्धन उत्सव भी कहा जाता है, विशेष रूप से उत्तर भारत का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाता है और भगवान कृष्ण के गोवर्धन पर्वत को उठाने के अद्भुत किस्से की याद दिलाता है. मान्यता है कि इस दिन, भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों को इंद्र देव के प्रकोप से बचाया था. इस दिन गोवर्धन की पूजा अर्चना करने का विधान है।

इस दिन घरों में गोवर्धन की आकृति बनाकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है. इस त्योहार को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान को विभिन्न प्रकार के अन्न और फल चढ़ाए जाते हैं. यह त्योहार हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने और कृषि के महत्व को समझने की सीख देता है. गोवर्धन पूजा के दिन कढ़ी चावल और अन्नकूट बनाने और फिर भगवान को इनका भोग लगाने की परंपरा बरसो पहले से चली आ रही है. आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा के दिन कड़ी-चावल और अन्नकूट का भोग क्यों लगाया जाता है।