Swabhiman TV

Best News Online Channel

कैसे बनता है सोना ? कैसी होती है सोने की खदाने? जाने सबकुछ

कैसे बनता है सोना ? कैसी होती है सोने की खदाने? जाने सबकुछ

 

सोना एक ऐसी धातु है जिसे पाकर हर कोई प्रसन्न हो जाता ह। उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है। ऐसा लगता है सोना पाकर इनसान को दुनिया की हर ख़ुशी मिल गई हो। खासतौर से महिलाओ के लिए तो सोने के आभूषण उन्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यारे होते है। शादी हो या कोई पार्टी महिलाये सोने के आभूषण पहनकर बहुत खूबसूरत लगती है। पूजा पाठ से लेकर हर शुभ कार्य में सोने का इस्तेमाल होता है। सोना काफी कीमती होता है। सोना तोलेके हिसाब से बिकता है। एक टोला सोना दस ग्राम होता ह। मौजूदा समय में एक तोले सोने की कीमत करीब पचास हजार रूपये है। देवी देवताओ को भी आपने सोने के आभूषण पहने देखा है।
लेकिन क्या आप जानते है की सोना कहा से आता है? क्या किसी फक्ट्री में बनाया जाता है या फिर इसकी खेती होती है? सोना नदियों में मिलता है या खदानों में मिलता है? आपके हर सवाल का जबाब मिलने वाला है? आज हम आपको बतायेगे की सोना कैसे बनता है? वो कहा मिलता है?
दुनिया में बहुत सारी ऐसी जगह है जहाँ पर सोने की खदाने है। जहाँ सिर्फ सोना ही सोना है। इन खदानों से दिन रात सोना निकाला जाता है।
सोने का खनन भारत में अत्यंत प्राचीन समय से हो रहा है। कुछ विद्वानों का मत है कि दसवीं शताब्दी के पूर्व पर्याप्त मात्रा में खनन हुआ था। गत तीन शताब्दियों में अनेक भूवेत्ताओं ने भारत के स्वर्णयुक्त क्षेत्रों में कार्य किया किंतु अधिकांशत: वे आर्थिक स्तर पर सोना प्राप्त करने में असफल ही रहे। भारत में उत्पन्न लगभग संपूर्ण सोना मैसूर राज्य के कोलार तथा हट्टी स्वर्णक्षेत्रों से निकलता है। अत्यंत अल्प मात्रा में सोना उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पंजाब तथा मद्रास राज्यों में भी अनेक नदियों की मिट्टी या रेत में पाया जाता है किंतु इसकी मात्रा साधारणत: इतनी कम है कि इसके आधार पर आधुनिक ढंग का कोई व्यवसाय आर्थिक दृष्टि से प्रारंभ नहीं किया जा सकता। इन क्षेत्रों में कुछ स्थानों पर स्थानीय निवासी अपने अवकाश के समय में इस मिट्टी एवम्‌ रेत को धोकर कभी कभी अल्प सोने की प्राप्ति कर लेते हैं।

कोलार स्वर्णक्षेत्र मैसूर राज्य के कोलार जिले में मद्रास के पश्चिम की ओर 125 मील की दूरी पर स्थित है। समुद्र से 2,800 फुट की ऊँचाई पर यह क्षेत्र एक उच्च स्थली पर है। वैसे तो इस क्षेत्र का विस्तार उत्तर-दक्षिण में 50 मील तक है किंतु उत्पादन योग्य पटिट्का की लंबाई लगभग 4 मील ही है। इस क्षेत्र में बालाघाट, नंदी दुर्ग, उरगाम, चैंपियन रीफ तथा मैसूर खानें स्थित हैं। खनन के प्रारंभ से मार्च 1951 के अंत तक 2,18,42,902 आउंस स्वर्ण, जिसका मूल्य 169.61 करोड़ रुपया हुआ, प्राप्त हुआ। कोलार क्षेत्र में कुल 30 पट्टिकाएँ हैं जिनकी औसत चौड़ाई 3-4 फुट है। इन पट्टिकाओं में सर्वाधिक स्वर्ण उत्पादक पट्टिका ‘चैंपियन रीफ’ है। इसमें नीले भूरे वर्ण का, विशुद्ध तथा कणोंवाला स्फटिक प्राप्त होता है। इसी स्फटिक के साहचर्य में सोना भी मिलता है। सोने के साथ ही टुरमेलीन भी सहायक खनिज के रूप में प्राप्त होता है। साथ ही साथ पायरोटाइट,पायराइट, चाल्कोपायराइट, इल्मेनाइट, मैग्नेटाइट तथा शीलाइट आदि भी इस क्षेत्र की शिलाओं में मिलते हैं।