भारत और चीन के संबंधों में तरलता बढ़ाने से संबंधों में हो सकता है सुधार

दिल्ली, 27 जुलाई। भारत और चीन दोनों एक बड़े आर्थिक समुदाय हैं और वे एक दूसरे के सबसे बड़े व्यापार साथियों में से हैं। इसलिए, दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए एक उचित तरीका हो सकता है।

हालांकि, भारत और चीन के बीच विवाद भी हैं, जो उनके संबंधों को अस्थिर बना रहते हैं। इन विवादों को समाधान करने के लिए दोनों देशों को एक साथ काम करना होगा। इसलिए, दोनों देशों को एक दूसरे की ओर से समझौते की तलाश करनी चाहिए जो उनके संबंधों को सुधारने में मदद कर सकते हैं।

इसके अलावा, दोनों देशों को अपने बीच संबंधों को बढ़ावा देने के लिए बड़े स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करने की आवश्यकता हो सकती है, जैसे कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यापार, वित्त और विकास आदि। इससे दोनों देशों के लिए आर्थिक विकास के अवसर बढ़ सकते हैं और इससे दोनों देशों को लाभ होगा।

अंततः, भारत और चीन के बीच संबंधों को बेहतर बनाने के लिए दोनों देशों को एक दूसरे की ओर से समझौते की तलाश करनी चाहिए जो उनके संबंधों को सुधारने में मदद करेंगे। इसके लिए दोनों देशों को एक दूसरे की समझ को बढ़ाने के लिए संवाद के माध्यम से बातचीत करनी चाहिए। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में विश्वास और सहयोग बढ़ाए जा सकते हैं और वे एक दूसरे के साथ एक समझौते पर पहुंच सकते हैं।

वैश्विक मानदंडों पर आधारित जितनी तरलता होगी, भारत और चीन के संबंध उतने ही स्थिर होंगे। इसलिए, दोनों देशों को एक दूसरे के साथ सहयोगी रहने के लिए अपने विरोधों को भूल करने के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना होगा। इसमें दोनों देशों के बीच जन-जीवन स्तर पर लोगों के संवाद को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता होगी।

इस संदर्भ में, भारत और चीन दोनों देशों के बीच कला, साहित्य, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अन्य विषयों पर विस्तृत अध्ययन करने और उन्हें साझा करने के लिए समर्थ हो सकते हैं। इसके अलावा, दोनों देशों के विभिन्न संस्थाओं और निजी क्षेत्रों में व्यापार, निवेश और पर्यटन के बीच सहयोग बढ़ाया जा सकता है।

इस तरह के सहयोग से, भारत और चीन दोनों देशों के बीच आत्मविश्वास बढ़ाकर सहयोग के साथ संबंधों को स्थायी बनाने में सक्षम हो सकते हैं।

भारत और चीन के बीच सीमा संबंधी मुद्दे एक दुश्मनी इतिहास के साथ जुड़े हुए हैं। इन मुद्दों में मुख्य रूप से जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र और अरुणाचल प्रदेश में चीन द्वारा अपने दावे के बारे में है।

चीन द्वारा जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में अपने दावों के बारे में मुख्य रूप से दो दावे हैं – एक आक्रमणकारी दावा और दूसरा तालाकोट दावा। चीन दावा करता है कि लद्दाख के कुछ क्षेत्रों में वह अपनी सीमा के अंतर्गत आता है, जो भारत के दावे के विपरीत होता है। इसके अलावा, चीन द्वारा तालाकोट के बारे में भी दावा किया जाता है कि यह उत्तराखंड के छोटे से गांव है जो चीन के अंतर्गत आता है।

अरुणाचल प्रदेश के बारे में, चीन द्वारा अपने दावे हैं कि अरुणाचल प्रदेश के वहां कुछ क्षेत्र उनके अंतर्गत हैं जो भारत के दावे के विपरीत होते हैं।

इन मुद्दों के समाधान के लिए, भारत और चीन दोनों देशों के बीच सीधे वार्ता होनी चाहिए। दोनों देशों को सीमा संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिए समझौता करना चाहिए। दोनों देशों को एक दूसरे के साथ सहयोग करने की भी आवश्यकता होगी जो इस मुद्दे के समाधान में मदद करेगी।

भारत और चीन के संबंधों में सहयोग को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कुछ कदम उठाए जा सकते हैं:

1. संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना: भारत और चीन को दोनों देशों के बीच सहयोगी रहने के लिए अपने विरोधों को भूल करने के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना होगा। इसमें दोनों देशों के बीच जन-जीवन स्तर पर लोगों के संवाद को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता होगी।

2. व्यापक व्यापक रूप से व्यापार और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना: भारत और चीन को एक दूसरे के साथ अधिक व्यापक व्यापक रूप से व्यापार और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने की आवश्यकता हो सकती है।

3. साझा अंतरिक्ष अनुसंधान को बढ़ावा देना: भारत और चीन के बीच साझा अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता हो सकती है। इसके लिए दोनों देशों को साझा अंतरिक्ष मिशनों के लिए संयुक्त रूप से काम करने की आवश्यकता होगी।

4. शिक्षा और विज्ञान में सहयोग बढ़ाना: भारत और चीन दोनों देशों को एक दूसरे के साथ सहयोग करके शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में विस्तृत अध्ययन करने और उन्हें साझा करने की भी आवश्यकता होगी।

5. सीमा संबंधी मुद्दों को हल करना: भारत और चीन के बीच सीमा संबंधी मुद्दों को हल करना भी दोनों देशों के संबंधों में सहयोग को बढ़ाने के लिए आवश्यक हो सकता है। इसमें दोनों देशों के बीच सीमा संबंधों पर सीधे वार्ता करना, संदिग्धता को समझना और समझौतों को भलीभांति पालन करना शामिल हो सकता है।

इन सभी कदमों को उठाकर, भारत और चीन दोनों देशों के संबंधों में सहयोग को बढ़ाया जा सकता है। इससे न केवल दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत होंगे, बल्कि दोनों देशों की आर्थिक विकास भी तेजी से होगी।

भारत और चीन के बीच सीमा संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए कुछ संगठन और समितियां हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

1. भारत-चीन सीमा समाधान समिति (India-China Border Dispute Resolution Mechanism): यह समिति 2012 में स्थापित की गई थी और इसका उद्देश्य है भारत और चीन के बीच सीमा संबंधी मुद्दों को समाधान करना। इस समिति के तहत, दोनों देशों के सीमा संबंधी मसलों पर चर्चा की जाती है और समाधान के लिए उपयुक्त कदम उठाए जाते हैं।

2. भारत-चीन सीमा समाधान कमेटी (India-China Border Affairs Working Mechanism): यह समिति 2012 में स्थापित की गई थी और भारत और चीन के बीच सीमा संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए निर्देशक समिति के रूप में काम करती है। यह समिति समाधान के लिए उपयुक्त कदमों की तैयारी करती है और दोनों देशों के सीमा संबंधी मसलों पर चर्चा करती है।

3. भारत-चीन सीमा सम्बन्धी संस्थागत संवाद (India-China Institutional Dialogue on Border Affairs): यह संवाद 2014 में स्थापित किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य भारत और चीन के बीच सीमा संबंधी मुद्दों के बारे में समाधान के उपायों की तलाश करना है। इस संवाद में दोनों देशों के सीमा संबंधी मसलों पर विभिन्न विषयों पर चर्चा होती है।

इन संगठनों और समितियों के अलावा, भारत और चीन दोनों देशों के सीमा संबंधी मुद्दों को सुलझाने के लिए विभिन्न बार्गस हुए हैं, जिनमें कुछ निम्नलिखित हैं:

1. 1993 और 1996 के सीमा समझौते (India-China Border Peace and Tranquility Agreements)

2. 2005 के सीमा समझौते (Agreement on the Political Parameters and Guiding Principles for the Settlement of the India-China Boundary Question)

3. 2013 के सीमा समझौते (Border Defence Cooperation Agreement)

इन समझौतों के अंतर्गत, दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी मुद्दों को समाधान करने के लिए विभिन्न उपायों का निर्धारण किया गया है।

By Anup