तिरंगे से सजा हिंदुस्तान, आखिर किसने किया तिरंगे को डिजाइन, क्या है तिरंगे का इतिहास? जाने सबकुछ

By: पंडित एके मिश्रा
बरेली, 14 अगस्त। आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर देश भर में हर घर तिरंगा अभियान चलाया जा रहा है। देश भर में हर घर में तिरंगा लहरा रहा है। पूरा देश देश भगति के रंग में रंगा हुआ है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी सभी धर्मो के लोग तिरंगे का सम्मान करते है, अभिमान करते है। लेकिन क्या आपको पता है की इस तिरंगे को किसने बनाया? तिरंगे में तीन रंग ही क्यों रखे गए? इन तीन रंगों का क्या मतलब है? क्या आजादी से पहले या बाद में तिरंगा डिजाईन किया गया? आज इन सभी सवालों का जवाब हम देंगे आपको।

2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटलापेनुमारु नामक स्थान पर जन्में पिंगली वैंकैया ही वो शख्सियत है जिन्होंने भारत के राष्ट्रीय ध्वज ( तिरंगे ) को डिजाइन किया था। पिंगली वैंकैया हमेशा से आजाद भारत देखना चाहते थे। वो अक्सर भारत को फिरंगियों से आजाद कराने की बात कहते थे। पिंगली वैंकैया ने राष्ट्रीय ध्वज की चर्चा महात्मा गांधी से भी की थी। और उन्हें पिंगली वैंकैया का ये सुझाव बहुत अच्छा लगा था। जिसके बाद महात्मा गांधी ने भी पिंगली वैंकैया से राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन तैयार करने को कहा।

राष्ट्रीय ध्वज को तैयार करना कोई छोटा मोटा काम नही था। उसके लिए पिंगली वैंकैया ने बहुत मेहनत की। उस समय आज की तरह न इंटरनेट की व्यवस्था थी, न कंप्यूटर था और न ही फोन की व्यवस्था थी। ऐसे में राष्ट्रीय ध्वज का डिजाइन तैयार करना किसी युद्ध से कम नहीं था। क्योंकि राष्ट्रीय ध्वज ऐसा तैयार किया जाना था जिससे सभी जाति धर्म के लोगो को अच्छा संदेश जाए। जिसके बाद राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) तैयार हुआ। जिसे आज हम हर घर में सजा रहे है। पूरा देश तिरंगे से सजा हुआ है। तिरंगा हमारे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। तिरंगा हमारी आन मान शान है। हर फौजी का ये सपना होता है की अगर वो बोर्डर पर दुश्मनों से लोहा लेते वक्त शहीद हो जाए तो उसका पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपट कर आए। ऐसा है हमारा तिरंगा।

आइए अब नजर डालते है तिरंगे से जुड़ी कुछ और जानकारियों पर

काकीनाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान वेंकैया ने भारत का खुद का राष्ट्रीय ध्वज होने की आवश्यकता पर बल दिया और, उनका यह विचार गांधी जी को बहुत पसन्द आया। गांधी जी ने उन्हें राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप तैयार करने का सुझाव दिया।
पिंगली वैंकया ने पाँच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में वैंकया पिंगली महात्मा गांधी से मिले थे और उन्हें अपने द्वारा डिज़ाइन लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद ही देश में कांग्रेस पार्टी के सारे अधिवेशनों में दो रंगों वाले झंडे का प्रयोग किया जाने लगा लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी। इस बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया। बाद में गांधी जी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली।

कैसे और कहा से ली शिक्षा

पिंगली वैंकैया के पिता का नाम हनुमंतरायुडु और माता का नाम वेंकटरत्नम्मा था और यह तेलुगू ब्राह्मण कुल से संबद्ध थे। मद्रास से हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद वो अपने वरिष्ठ स्नातक को पूरा करने के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गये। वहाँ से लौटने पर उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर लखनऊ में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया और बाद में वह एंग्लो वैदिक महाविद्यालय में उर्दू और जापानी भाषा का अध्ययन करने लाहौर चले गए। वो कई विषयों के ज्ञाता थे, उन्हें भूविज्ञान और कृषि क्षेत्र से विशेष लगाव था। वह हीरे की खदानों के विशेषज्ञ थे। पिंगली ने ब्रिटिश भारतीय सेना में भी सेवा की थी और दक्षिण अफ्रीका के एंग्लो-बोअर युद्ध में भाग लिया था। यहीं यह गांधी जी के संपर्क में आये और उनकी विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए। 1906 से 1911 तक पिंगली मुख्य रूप से कपास की फसल की विभिन्न किस्मों के तुलनात्मक अध्ययन में व्यस्त रहे और उन्होनें बॉम्वोलार्ट कंबोडिया कपास पर अपना एक अध्ययन प्रकाशित किया। इसके बाद वह वापस किशुनदासपुर लौट आये और 1916 से 1921 तक विभिन्न झंडों के अध्ययन में अपने आप को समर्पित कर दिया और अंत में वर्तमान भारतीय ध्वज विकसित किया। पिंगली वैंकैया अमृत महोत्सव के इस महापर्व पर हम सभी को बहुत याद आ रहे है। उनकी मृत्यु 4 जुलाई, 1963 को हुई।

 

By Anup

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