भगवान शिव के 12 अद्भुत ज्योतिर्लिंग

 भारत में 12 ऐसे स्थान हैं जहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे, उन 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा की जाती है, आइए जानते हैं कौन से हैं ज्योतिर्लिंग। शिव पुराण में 64 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख है। इन 64 में से 12 भगवान शिव लिंगों को महाज्योतिर्लिंगम कहा जाता है। हिंदू  धर्म में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति सुबह-शाम इन 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम से सच्ची श्रद्धा रखता है, उसके कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग:   भारत के गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर स्थित है। इस दुर्लभ अत्यंत प्राचीन मंदिर का निर्माण प्राचीन ग्रंथों के अनुसार स्वयं चंद्रदेव ने किया था।

12 ज्योतिर्लिंगों में यह सबसे पहला तीर्थ स्थल माना जाता है।इस मंदिर की भव्यता को देखते हुए इतिहास में मोहम्मद गजनी से लेकर औरंगजेब तक मुगल शासकों ने इसे कई बार लूटा, मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा लेकिन पवित्र ज्योतिर्लिंग यथावत रहा और भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने  इसका पुनर्निर्माण करवाया। 

2. मल्लिकार्जुन:  आंध्र प्रदेश जिले के श्रीशैलम में स्थित नंदयाला में यह मंदिर तीस तीसरा ज्योतिर्लिंग है । एक दंतकथा के अनुसार है, एक बार जब कार्तिकेय रुष्ट होकर चले गए तो शिव पार्वती कार्तिकेय को  मनाने के लिए इसी स्थान पर आए थे। यहां स्थापित शिवलिंग को मल्लिकार्जुन के नाम से पूजा जाता है और माता पार्वती को भ्रमरंभा के रूप में , इस जगह को श्रीशैलम कहा जाता है। इसमें भगवान शिव लिंगम और शक्तिपीठ एक साथ हैं।

3. महाकालेश्वर: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में शिप्रा नदी के पास स्थित है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पवित्र स्थान माना जाता । इस मंदिर में महाकालेश्वर की मूर्ति का मुख दक्षिण की ओर है। यह मंदिर 18 महा शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है की माता सती का मुख का भाग यहां गिरा था जिसे महाकाली कहा जाता है ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार उज्जैन शहर को अवंतिका के नाम से जाना जाता था उज्जैन शहर के राजा चंद्रसेन पर एक बार पड़ोसी देश के शक्तिशाली राजा रिपुदमन और सिंहआदित्य ने राक्षस दूषण की मदद से राजा चंद्र सिंह पर हमला कर दिया व शिव भक्तों पर हमला करके शहर को लूट लिया।
यह खबर जब उज्जैन में रह रहे शिवभक्त शिखर और वृद्धि को लगी तो उन्होंने शिवजी की आराधना शुरू कर दी और अपने भक्तों की आवाज पर शिवजी स्वयं वहां प्रकट हुए और उनके दुश्मनों का नाश किया उसके पश्चात अपने भक्तों के आग्रह पर भगवान शिव वहां महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा के लिए स्थापित हो गए।

सन 1234 ई. और 35 के बीच इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण कर दिया था और मंदिर के परिसर को क्षतिग्रस्त कर दिया था और साथ ही साथ पवित्र शिवलिंग को भी खंडित किया था । सांस्कृतिक धरोहर के क्षतिग्रस्त होने के कई वर्षों बाद 1734 ई. में मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव के सेनापति राणाजी शिंदे द्वारा परिसर का निर्माण कराया गया ।

 

4. ओंकारेश्वर: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इंदौर से लगभग 80 किलोमीटर दूर खंडवा जिले के खंडवा शहर के पास मांधाता में पहाड़ी पर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। किंवदंतियों के अनुसार श्री राम के पूर्वज राजा मांधाता और उनके पुत्रों अंबरीश और मुचकुंद ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, इस पर महादेव स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां कुबेर ने भी महादेव को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की थी जिस पर महादेव ने प्रसन्न होकर कुबेर को धन दौलत से परिपूर्ण कर दिया थ इस मंदिर में ओंकारेश्वर महादेव दो रूपों में विराजमान है जिसको ओंकारेश्वर और ममलेश्वर कहा जाता है ममलेश्वर यहां से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

 

शिवपुराण के अनुसार ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को परमेश्वर लिंग भी कहा जाता है । इस मंदिर की मान्यता है कि यहां महादेव और मां पार्वती रोज चौसर खेलने आते हैं, मंदिर के गर्भ ग्रह के दरवाजे रोज रात को बंद कर दिए जाते हैं और सुबह हर रोज चौसर की गोटिया बिखर जाती है । पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। 

5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग : केदारनाथ ज्योतिर्लिंग 12 ज्योतिर्लिंग में से में से एक ज्योतिर्लिंग सबसे उच्च स्थान पर स्थित है।यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के गढ़वाल में हिमालय पर्वत की शृंखला पर केदार घाटी मे स्थित है।इस मंदिर तक पहुंचने के लिए गौरीकुंड से स्नान करके 22 किमी की कठिन यात्रा तय की जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने भाइयों की हत्या के पश्चाताप हेतु महादेव की उपासना के लिए यहां पहुंचे थे महादेव की पांडवों ने कठोर तपस्या की पर भगवान भोलेनाथ ने इतनी आसानी से दर्शन नहीं दिए उन्होंने एक बैल का रूप धारण करके उनकी परीक्षा ली और मवेशियों के झुंड में शामिल हो गए इस पर भीम को थोड़ा शक हुआ और उसने अपने दोनों पांव पहाड़ के बीच कर लिए सारे मवेशी भीम के पांव के नीचे से निकल गए लेकिन महादेव जैसे ही अंतर ध्यान होने लगे भीम ने बैल को पकड़ लिया अभी महादेव रूपी बैल जमीन में धरती में समा ही रहा था की भीम ने  बैल को पीठ  के ऊपरी भाग से पकड़ लिया इस पर महादेव प्रसन्न हो गए और उन्होंने तुरंत पांडवों को दर्शन देकर उनके सभी पाप माफ कर दिए , तभी से केदारनाथ में महादेव बैल की पीठ के त्रिकोणीय ऊपरी भाग के ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो

16 जून 2013 शाम करीब 7:30 बजे जोरदार गड़गड़ाहट के साथ चोराबाड़ी ताल से आवाज़ आने लगी और भारी मात्रा में पानी मंदाकिनी नदी की ओर बहने लगा जो की सुबह होने तक अपने सामने वाली हर वस्तु को बहा के ले जा रहा था लेकिन महादेव साक्षात इस जगह विराजमान है और भैरवनाथ खुद इस पवित्र स्थान की रक्षा करते हैं इसका प्रमाण उसी वक्त मिल गया जब एक बड़ा विशालकाय पत्थर अचानक मंदिर के पीछे आकर रुक गया और बहते हुए पानी को मंदिर के आसपास से काट दिया इससे मंदिर संपूर्ण रूप से सुरक्षित हो गया और मंदिर का कोई बाल बांका नहीं हुआ। इस चमत्कार को पूरी दुनिया ने देखा और यह पत्थर आज भी मंदिर के पीछे स्थापित है।

 

6. भीमाशंकर: भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किमी दूर एक गांव भीमाशंकर में एक पहाड़ी पर स्थित है।  18वीं शताब्दी में मंदिर के हॉल का निर्माण पेशवा के नाना ने कराया था और शेष मंदिर का निर्माण छत्रपति शिवाजी महाराज ने कराया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार त्रिपुर नामक असुर ने ब्रह्मा की कठोर तपस्या की जिससे ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उसको वरदान दिया की गंधर्व ,देवताओं और असुरों पर अजय रहे। ब्रह्मा का वरदान पाकर त्रिपुर तीनों लोगों को अपने अधीन बनाने के लिए निकल पड़ा उसने स्वर्ग में देवताओं को जीत लिया इस पर इंद्र ने महादेव की उपासना की और उनसे मदद की गुहार लगाई। महादेव ने देवताओं और इंद्र को त्रिपुर का वध करने का आश्वासन दिया और भीम शंकर का रूप धारण करके उसका वध किया और देवताओं को उसके चंगुल से आजाद कराया। ऐसा माना जाता है युद्ध के पश्चात महादेव का जो पसीना निकला उससे भीमरथी नदी का निर्माण हुआ और उसके बाद महादेव सदा के लिए वहीं स्थापित हो गए।

7. विश्वेश्वर: विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश का शहर वाराणसी अर्थात प्राचीन काल का शहर काशी में स्थित है। वाराणसी में काशी विश्व के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है, पवित्र गंगा नदी के तट पर एक छोटी सी विश्वनाथ गली में स्थित इस मंदिर को काशी विश्वनाथ भी कहा जाता है। मक्कार मोहम्मद गौरी, सिकंदर लोदी और नीच औरंगजेब ने कई बार इस मंदिर को छतिग्रस्त किया।

अकबर के शासनकाल में इस मंदिर का निर्माण मान सिंह ने कराया था और उनके बाद 1585 में टोडरमल द्वारा मंदिर का पूर्ण निर्माण कराया गया । लेकिन 1669 में धूर्त औरंगज़ेब ने मंदिर को ध्वस्त कर दिया और उसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया। 1780 में मराठा शासक अहिल्याबाई होलकर ने मस्जिद के बगल में मंदिर का निर्माण कराया । 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी पत्नी दातार कौर के कहने पर मंदिर के गुंबद के लिए एक 1 टन शुद्ध सोना दान किया था ।

 

यह एक पौराणिक और ऐतिहासिक दुर्लभ शिव ज्योतिर्लिंग मंदिर है।

इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण यानी चौथी और पांचवीं शताब्दी के पुराणों में किया गया है। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद और गुरु नानक देव जैसे कई प्रमुख संतों ने इस मंदिर के दर्शन किए हैं।

दिसंबर 2021 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया गया, जिससे पर्यटको और तीर्थयात्रियों की यात्रा आसान हो गई । फरवरी 2022 में एक दानकर्ता ने लगभग 60 किलो सोना दान किया, जिसके बाद गर्भ ग्रह मड़वा में दिया गया । मान्यता हैं की सच्ची श्रद्धा से काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

8. त्रयंबकेश्वर: त्रियंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले से लगभग 28 किमी दूर त्रयंबक शहर में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है।

इस मंदिर में तीन लिंग हैं जो शिव, विष्णु और ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं यह मंदिर तीन सुंदर पहाड़ियों ब्रह्मगिरि, नीलगिरि और कालगिरि के बीच स्थित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रंबकेश्वर में 24 वर्षों तक अकाल पड़ा जिसकी वजह से महर्षि गौतम ने कठोर तपस्या से वरुण को प्रसन्न किया और महर्षि गौतम के आश्रम स्थान पर वरुण देवता ने रोज बारिश का इंतजाम किया और महर्षि गौतम ने फसल उगा कर ऋषि मुनि व साधु संतों के भोजन का प्रबंध किया। हालांकि बाद में इंद्र की चाल बाजी से महर्षि गौतम गौ हत्या में फंस गए थे जिसके प्रायश्चित में उन्होंने महादेव की तपस्या ब्रह्मगिरि के शिखर पर जाकर की और देवों के देव महादेव को प्रसन्न करके उनके द्वारा छोड़ी गई गंगा में स्नान करके गौ हत्या के पाप से मुक्त हुए। मंदिर में कई संतों की समाधियां है और मंदिर में अमृतवर्षिणी नामक तालाब स्थित है।

पवित्र लिंग पांडवों के समयकाल के एक रत्न जड़ित मुकुट से ढका हुआ है जिसमें हीरा, पन्ना और कई बेशकीमती महत्वपूर्ण रत्न शामिल हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत के तलहटी में स्थित यह मंदिर वास्तुकला और हस्तकला के लिए जाना जाता है। इस मंदिर में कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान होते हैं जैसे नारायण नागबली की पूजा सिर्फ त्रंबकेश्वर मंदिर में ही होती हैं, कालसर्प शांति आदि पूजा जैसे कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जैसे कि संतान की प्राप्ति के लिए, आर्थिक तंगी या किसी भी बीमारी को ठीक करने के लिए पूजा की विधिविधान से पूजा होती हैइस मंदिर का निर्माण मराठा संघ के  पेशवा बालाजी बाजीराव यानी नाना साहेब ने किया था। 

9. नागेश्वर: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के औंधा नागनाथ स्थान दारूका वन के पास स्थित है है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार दारूक और दारूका नामक राक्षस व राक्षासी इस जंगल में रहा करते थे माता पार्वती की पूजा करके उनको प्रसन्न करके दारू का ने पूरे जंगल में अपना आधिपत्य जमा रखा था  जंगल में धीरे-धीरे उस राक्षस और राक्षसी का आतंक फैल गया, दोनों राक्षसों ने कई ब्राह्मणों को मौत की नींद सुला दिया और बंधक बना लिया, लेकिन एक शिवभक्त सुप्रिया ने भोलेनाथ की तपस्या की और भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसकी दर्शन दिए और राक्षसों का अंत कर दिया और अपने भक्तों के अनुग्रह पर खुद को नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित किया।

बाद में कालांतर में इस स्थान पर एक बड़ी पानी की झील बनी और ज्योर्तिलिंग पानी समा गया । महाभारत काल में जब पांडवों की चौसर पासा में हार हुई थी तब 12 साल के बनवास में जंगल में भटकते हुए इस क्षेत्र आ गए, भीम ने देखा कि एक गाय झील में जाकर खड़ी होकर झील में अपना दूध दे रही है तो भीम ने अपनी गदा के प्रहार से झील सुखा दी और झील के बीच में शिवलिंग देखकर आश्चर्यचकित हो गए । उस शिवलिंग मे 12 सूर्यो के सामान तेज प्रकाश था श्रीं कृष्ण ने पांडवों को बताया की यह पवित्र नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है और श्री कृष्ण ने पांडवों से रामेश्वरम से रेत लाकर शिवलिंग को ढकने को कहा पांडवों ने रेत लाकर शिवलिंग को ढक दिया और पवित्र शिवलिंग की पूजा की और भारी पत्थरों की संरचना से मंदिर बनाया ।

हर मंदिर का द्वार पूर्व की तरफ होता है पर इस मंदिर का द्वार पश्चिम की तरफ है इसके पीछे मंदिर से जुड़ी एक शिव भक्त संत नामदेव की कहानी है । एक बार संत नामदेव मंदिर के द्वार के सामने बैठकर शिव की भक्ति में लीन थे की पुजारी ने उनको डाटकर भगा दिया तो वे मंदिर के पीछे पश्चिम में बैठ कर शिव भक्ति में लीन हो गए ,इसपर देवो के देव महादेव ने अपना मुख भी पश्चिम में कर लिया। 

तीन ज्योतिर्लिंग ही ऐसे है जिनकी पूर्ण परिक्रमा की जाती है एक त्रियंबकेश्वर दूसरा काशी (विश्वेश्वर) और तीसरा नागेश्वर । यह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने नंदी नही है बल्कि नंदी एक अलग प्रांगण में विराजमान है । नागेश्वर शिवलिंग पर दूध जल बेलपत्र के साथ तुलसी भी चढ़ती है क्योंकि इस शिवलिंग की शालांका शालिग्राम की है ।कहा जाता है की यह हर और हरि दोनो का ही वास है ।

 मक्कार और धुर्त शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया और काफी नुकसान पहुँचाया। इसके बाद मराठा शासक भारत की शान अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। 

10. बैद्यनाथ: बैद्यनाथ पवित्र ज्योतिर्लिंग झारखंड के जिला देवघर में संथाल परगना में स्थित है, इसे भगवान शिव के सबसे पवित्र निवासों में से एक माना जाता है। यह झारखंड प्रांत के संथाल परगना मंडल के देवघर में स्थित है।

हिंदू दंत कथाओं के अनुसार एक बार रावण ने जब हिमालय के पास भगवान शिव तपस्या की तब भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने नौ सर धड़ से अलग कर दिए और जैसे ही दसवां सर काट रहा था तभी भगवान भोलेनाथ उसकी भक्ति पर प्रसन्न होकर प्रकट हो गए और वरदान मांगने को कहा। रावण ने रावण ने कामना लिंग अपने साथ ले जाने की इच्छा व्यक्त की और कहा प्रभु आप कैलाश छोड़कर मेरे साथ लंका चले इस पर भगवान भोलेनाथ राजी हो गए पर एक शर्त रखी यदि या लिंग बीच में किसी स्थान पर रख दिया तो यह वही स्थापित हो जाएगा और इसको कोई विस्थापित नहीं कर पाएगा।

जल आचमन कर रावण लिंग को उठाकर लंका की तरफ चल पड़ा , रास्ते में झारखंड के पास देवघर में रावण को पेशाब लगी , इस पर जैसे ही वह इधर-उधर देख रहा था कि भगवान विष्णु ने एक बैजू ग्वाले का रूप धारण करके रावण के सामने आकर मुस्कुरा कर कहा लाइए इसे मैं पकड़ लेता हूं आप पेशाब कर आए । भगवान विष्णु ने तुरंत उस कामना लिंग को भूमि पर रख दिया और लिंग वहीं स्थापित हो गया । जब रावण वापस आया तो उसे बहुत कष्ट और दुःख हुआ बहुत दुखी मन से वह वापस लंका चला गया। इसके बाद महादेव झारखंड के देवघर क्षेत्र में ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए । भक्तों की सच्ची श्रद्धा और भावना से पूजा करने पर महादेव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं

 11. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग: भारत के तमिलनाडु प्रदेश प्रदेश के रामनाथपुरम जिले में स्थित एक भव्य भगवान शिव का मंदिर है यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग है। रामेश्वरम शंख के आकार का एक टापू है, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर से घिरे इस टापू पर लाखों श्रद्धालु आते हैं ।

इस ज्योतिर्लिंग को श्री राम ने स्थापित किया था इसलिये इसको रामनाथस्वामी के नाम से भी पुकारा जाता है । गर्भ ग्रह में भगवान के दो लिंग हैं जिनमें से एक माता सीता ने श्री राम के साथ लौटकर रेत् का लिंग तैयार किया था जिसे रामलिंग कहते हैं।

इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण श्री राम ने रावण से युद्ध के लिए लंका जाते वक्त भगवान शिव की उपासना के लिए किया था। यही वह जगह है जहां श्री राम ने नल और नील जैसे शक्तिशाली वानरों की सहायता से रामसेतु का निर्माण किया था पौराणिक कथाओं  के अनुसार नल और नील को श्राप मिला था कि जो भी चीज जल में डालेंगे वह नहीं डूबेगी।

लगभग 7000 वर्ष पुराना रामसेतु आज पूरी दुनिया को आश्चर्यचकित कर देने वाला अद्भुद निर्माण है । आज भी रामसेतु के अवशेष लगभग 48 किलोमीटर तक लंका की ओर पाए जाते।

श्रीराम ने रावण से युद्ध रावण का वध किया था और ब्रह्म हत्या के पाप के प्रायश्चित के लिए एक किवदंती के अनुसार दूसरा लिंग श्रीराम के निर्देश पर हनुमान जी कैलाश पर्वत से लेकर आये थे जिसकी उपासना के बाद भोलेनाथ ने श्री राम को ब्रह्म हत्या से मुक्त किया था

इस मंदिर का गलियारा भारत में पाए जाने वाले सभी हिंदू मंदिरों में सबसे बड़ा है जिसका निर्माण राजा मुथुरामलिंग सेतुपति ने करवाया था । इस मंदिर का जीर्णोद्धार 11वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक कई राजाओं ने किया जिसे इतिहास के रूप में दर्ज किया है।

12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: –  यह पवित्र ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजी नगर जिले के दौलताबाद के वेरुल क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

इस प्राचीन मंदिर को 13वीं और 14वीं सदी में मुगलों द्वारा कई बार क्षतिग्रस्त किया गया और इसके बाद 18वीं सदी में इंदौर की राजकुमारी अहिल्याबाई होलकर द्वारा जीर्णोद्धार कर इसे पुनः स्थापित कराया गया । महारानी अहिल्याबाई होलकर का भारत के कई महत्वपूर्ण मंदिरों व ज्योतिर्लिंगों के जीर्णोद्धार और निर्माण को नही भुलाया जा सकता। महारानी अहिल्याबाई ने न सिर्फ महादेव के मान की रक्षा की बल्कि समूचे भारत के सम्मान व स्वाभिमान की रक्षा की।

 

इन पवित्र ज्योतिर्लिंगों पर आने वाले श्रद्धालुओं की पवित्र मन और दिल से मांगी गई हर इच्छा को भोलेनाथ पूरी करते हैं । भोलेनाथ के इन 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में हम जितनी बार भी दर्शन करते हैं तो हमारा पुण्य बढ़ता है और सभी धर्मो से ऊपर हजारों सालों से पौराणिक हिंदू संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक इन पवित्र ज्योतिर्लिंग भगवान भोलेनाथ, भगवान शिव के साक्षात प्रतीक व स्वरूप है ।

इनके बारे में को आज के इन नवयुवकों को बताना बहुत जरूरी है। भोलेनाथ के हर उसे भक्ति से गुजारिश है जो सनातन धर्म को सर्वोच्च स्थान पर देखना चाहता है वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को इन ज्योतिर्लिंगों की अद्भुत शक्ति स्वरूप के बारे में बताएं और इस खबर को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि महारानी अहिल्या बाई होलकर द्वारा भारतीय संस्कृति को बचाने का महान कार्य बच्चे बच्चे को पता चले ,ॐ नमः शिवाय।