एक मां अपनी नन्हीं-सी बेटी की वापसी के लिए दूर देश तक जंग लड़ रही है. उसे इस जंग में सफलता भी मिलते दिखने लगी है. मामला जर्मनी से जुड़ा है. 29 महीने की बच्ची अरिहा शाह जब 7 माह की थी, तब उसे माता-पिता से छीन लिया गया था. आरोप लगाया गया था कि वो बच्ची के साथ क्रूरता करते हैं. हालांकि, जांचमें आरोप गलत पाए. लेकिन, बच्ची की वापसी अब तक नहीं हो पाई. अब भारत सरकार ने प्रयास शुरू कर दिए हैं.

जर्मनी में 22 महीने से फंसी बेबी अरिहा शाह के मसले पर मोदी सरकार एक्शन में आ गई है. भारत ने इस सप्ताह जर्मन राजदूत फिलिप एकरमैन को तलब किया और बच्ची और बच्ची की शीघ्र वापसी के लिए कहा है. ये बच्ची इस समय बर्लिन में एक फोस्टर केयर सेंटर में रह रही है. बच्ची के माता-पिता पर क्रूरता का आरोप लगाकर उसे कस्टडी में भेजा गया था. तब से परिजन लगातार परेशान हैं. दावा है कि क्रूरता के आरोप भी गलत पाए गए हैं. उसके बावजूद बच्ची को नहीं सौंपा जा रहा है.

मामला 23 सितंबर, 2021 का है. जब अरिहा शाह सिर्फ सात महीने की थी तब उसे एक एक्सीडेंटल इंजरी हुई तो मां धारा शाह बच्ची को लेकर डॉक्टर के पास पहुंचीं. वहां डॉक्टर्स ने चाइल्ड केयर सर्विस को फोन करके बुला लिया और उन्हें बच्ची को सौंप दिया. अरिहा अब तक 29 महीने की हो गई और 22 महीने से जर्मनी के यूथ वेलफेयर ऑफिस (जुगेंडमट) की कस्टडी में फॉस्टर केयर में रह रही है.

भारत सरकार ने क्या कहा है…

-फॉस्टर केयर में बच्चे को देखभाल के उद्देश्य से रखा जाता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि जर्मन राजदूत एकरमैन को इस सप्ताह की शुरुआत में बुलाया गया था और अरिहा पर भारत की चिंताओं से उन्हें स्पष्ट रूप से अवगत कराया गया.

-भारत का मानना है कि बच्ची के लिए उसके भाषाई, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक वातावरण में रहना महत्वपूर्ण है. बागची ने आगे कहा, हमने इस मामले को उच्चप्राथमिकता दी है. हमारा मानना ​​है कि बच्ची को जर्मन पालक देखभाल में रखे जाने से उसके सांस्कृतिक अधिकारों और एक भारतीय के रूप में उसके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.

– हमने बच्ची को जल्द भारत वापस लाने के लिए भी कहा है. भारत इस मामले पर जर्मन अधिकारियों पर दबाव बनाना जारी रखेगा.
– जर्मन अधिकारियों ने यह आरोप लगा यह आरोप लगाते हुए बच्ची को पालक देखभाल में रखा कि भारतीय माता-पिता उसे परेशान करते थे.विदेश मंत्रालय और बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास लगातार अरिहा शाह की भारत वापसी की वकालत कर रहा है.

– पिछले दिसंबर में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी जर्मन समकक्ष एनालेना बेयरबॉक को बच्ची को लेकर भारत की चिंताओं से अवगत कराया था.

क्या है पूरा मामला

 

अहमदाबाद के निवासी भावेश शाह और धारा वर्क वीजा पर जर्मनी के बर्लिन गए थे. वहां इस गुजराती परिवार की दुनिया उस समय बिखर गई, जब अरिहा के प्राइवेट पार्ट पर चोट लग गई और अस्पताल ले जाने पर मां-बाप पर ही यौन उत्पीड़न का आरोप लगा. अरिहा को प्रशासन ने फोस्टर केयर होम भेज दिया. सितंबर 2021 के बाद से ही यह परिवार अरिहा की कस्टडी के लिए कानूनी जंग लड़ रहा है. डॉक्टर को अरिहा के डाइपर पर खून मिला था.

दो साल बाद कस्टडी से दावा खो देगा परिवार?

अरिहा की मां धारा का कहना है कि इस साल अगस्त के अंत में अरिहा को फोस्टर केयर होम में दो साल पूरे हो जाएंगे. जर्मनी सरकार के नियमों के तहत अगर किसी बच्चे को फोस्टर केयर होम में रहते हुए दो साल हो जाते हैं तो उस बच्चे को उनके मां-बाप को नहीं लौटाया जाता है. ऐसे में बच्ची की वापसी पर संकट आ जाएगा. धारा बताती हैं कि कई भारतीय माता-पिता ने इन आरोपों को झेला है और बच्चों को उनकी हिरासत से हटा दिया गया है. हर बार जब देश के प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करते हैं और समकक्ष से बात करते हैं, तब इसमें मदद मिलती है.

अरिहा की मां धारा शाह ने बताया पूरा घटनाक्रम…

अरिहा की मां धारा शाह ने इस पूरे घटनाक्रम के बारे में सिलसिलेवार जानकारी दी थी. उन्होंने बताया कि जब वो 7 महीने बच्ची को लेकर डॉक्टर के पास पहुंची तो जांच के बाद कहा गया कि ‘सब ठीक है’. बाद में फॉलोअप के लिए गए तो उन्होंने बच्ची को हमसे छीन लिया. हम पर भद्दा और झूठा आरोप लगाने की कोशिश की गई.लेकिन, हम सच्चे थे. क्योंकि हम खुद डॉक्टर के पास लेकर गए थे.

– सारी चीजें वेरिफाई हो गईं. जिस हॉस्पिटल ने चाइल्ड केयर को बुलाया था, उन्होंने दिसंबर 2021 में रिपोर्ट दे दी. उस रिपोर्ट में उन्होंने सेक्सुअल एब्यूज को खारिज कर दिया. बच्ची के पिता और दादा के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले. फरवरी 2022 में पुलिस ने यह केस बंद कर दिया. हमें लगा कि इन लोगों की जो भी गलतफहमी थी, वो क्लियर हो गई है. अब हमें बच्ची दे दी जाएगी. उसके बावजूद चाइल्ड केयर ने पेरेंटल कस्टडी को टर्मिनेट करने का केस जारी रखा गया.

– फैमिली कोर्ट ने हमारी पैरेंटल एबिलिटी रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए. अब तर्क दे रहे हैं कि बच्ची को अटैचमेंट डिसऑर्डर है. अंजानों से घुल-मिल जाती हैरिकमंडेशन में कहा कि बच्ची पैरेंट्स के साथ बहुत खुश है. बिल्कुल भी नहीं घबराती है. बहुत प्यार से रहती है. इसलिए बच्ची को पैरेंट्स चाइल्ड फैसिलिटी में रखा जाए.

– जर्मन कोर्ट अपॉइंट एक्सपर्ट ने बोला कि बच्ची को पैरेंटस के साथ रखा जाए. भारत सरकार ने बोला कि बच्ची को यहां लाया जाए. हम उसकी देखभाल करेंगे. हम इस संबंध में कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे थे. पिछले हफ्ते पता चला कि जर्मन चाइल्स सर्विस ने बच्ची को 20 महीने से जिस जगह पर रखा था, वहां से उठाकर इंस्टीट्यूट में डाल दिया है. चिल्ड्रन सेंटर में रखा है, ये सेंटर मंदबुद्धि बच्चों के लिए होते हैं.

– मां धारा शाह ने पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी याद किया था. उन्होंने कहा, ‘सुषमा स्वराज एक मां थीं, इसलिए वह एक मां का दर्द समझती थीं. यहां तक ​​कि विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने हमेशा इस कारण का समर्थन किया. वह कहती थीं, अगर बच्चा भारतीय नागरिक है तो हमें पता है कि अपने बच्चे की देखभाल कैसे करनी है. यह उनका स्टैंड था. मुझे भारत सरकार पर भरोसा है और मैं अनुरोध करती हूं कि एक बार इस मामले में प्रधानमंत्री का हस्तक्षेप हो जाए तो मेरी बेटी जल्द ही वापस आ जाएगी.