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घरों से आंगन खत्म हुआ, तो परिवारों में बढ़ गई दूरिया
जब घर में आंगन हुआ करते थे, सब एक साथ बैठकर बातचीत किया करते थे, अब घरों से आंगन खत्म हो गए है। जगह चाहे कम हो या ज्यादा, लेकिन लोग आंगन नही बनवाते, यही वजह है की परिवार बिखरने शुरू हो गए है। किसी के पास इतना वक्त नही की एक दूसरे के सुख दुख के बारे में पूछ ले। जब आंगन हुआ करते थे तब दादी बाबा बच्चो को कहानी सुनाते थे, रामायण की चौपाई और दोहे सुनाते थे, बच्चो से अपना अनुभव साझा करते थे, बच्चो से पहेलियां पूछा करते थे, जिससे बच्चो का ज्ञान बढ़ता था साथ ही आपस में मोहब्बत बढ़ती थी। जैसे जैसे सुख सुविधाएं बढ़ी वैसे वैसे लोग मानसिक तनाव में रहने लगे। भागदौड़ भरी जिंदगी में दिन रात आदमी सिर्फ पैसे कमाने में लगा रहता है। उसकी इक्षाए अनंत हो गई है। यही वजह है कि लोगो का सुकून गायब हो गया है। सिर्फ दिखावा रह गया है। ज्यादातर लोगो की जिंदगी तो कर्ज से भरी पड़ी है। घर, गाड़ी, एसी सबकुछ लोन पर है। लोग मानसिक तनाव में रहते है। यही वजह है की आज शुगर, बीपी, हार्ट अटैक जैसे बीमारियां आम बात हो गई है।
एक समय था जब सब एक साथ आंगन में बैठकर अपने सूख दुख साझा करते थे। मान्यता है की बेटी की शादी घर के आंगन से हो तो बहुत पुण्य माना जाता था। घर के आंगन में ही कन्यादान होता था। कहते है कि घर कुवारा नही रहता। इसलिए पहले घरों में ही विवाह होते थे। गरीब होता था तो उसकी आस पड़ोस और नाते रिश्तेदार सब मदद कर देते थे। दहेज का सामान सब आपस में इकठ्ठा करके दे देते थे। कोई अपना घर दे देता था जिसमे मेहमान रुक जाया करते थे। मोहल्ले के लड़के ही शादी की तैयारियो में लग जाते थे किसी को कोई शर्म नही आती थी काम करने में। सबको पंगत में बैठकर पत्तल में भोजन कराया जाता था। लोग बहुत मोहब्बत से भोजन करवाते थे।