दुनिया के सबसे बड़े परमाणु फ्यूजन रिएक्टर ने काम करना शुरू कर दिया है| ये जापान के नाका नॉर्थ इलाके में बनाया गया है| हैरानी की बात ये है कि इतना बड़ा रिएक्टर एक एक्सपेरिमेंट है| ताकि भविष्य में इंसानों की ऊर्जा संबंधी सभी जरूरतों को पूरा किया जा सके|

जापान के नाका नॉर्थ में दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर शुरू हो चुका है| इसे शुक्रवार को स्टार्ट किया गया| पूरी दुनिया में अभी जितने भी परमाणु संयंत्र है| वो सभी फिजन पर चलते है| जबकि ये न्यूक्लियर फ्यूजन से ऊर्जा पैदा कर रहा है| यानी यह दो अणुओं के केंद्रक को आपस में जोड़ता है, जबकि फिजन में यह केंद्रक अलग होते है|

इस न्यूक्लियर रिएक्टर का नाम है JT-60S | इसे इसलिए बनाया गया है ताकि बड़े पैमाने पर, सुरक्षित तरीके से और कार्बन मुक्त ऊर्जा पैदा किया जा सके| यह फिलहाल एक एक्सपेरिमेंट है, जिसे बाद में लोगों या देश की जरूरत के हिसाब से बड़े पैमाने पर स्थापित किया जा सकता है|

अगर न्यूक्लियर फ्यूजन से साफ-सुथरी बिजली पैदा की होती है, तो भविष्य में यह प्रदूषणमुक्त तरीका साबित होगा| यह रिएक्टर छह मंजिला ऊंचा है| इसमें मुख्य तौर पर डोनट के आकार का वेसल है| जिसे टोकामाक कहते है| इसके अंदर तेजी से प्लाज्मा को घुमाया जाता है| इस प्लाज्मा का तापमान 2 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है|

इस रिएक्टर को यूरोपियन यूनियन और जापान नें मिलकर बनाया है. फ्रांस भी इससे ज्यादा ताकतवर परमाणु संयंत्र बनाने में जुटा है. जिसका नाम है इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर | दोनों ही प्रोजेक्ट का एक ही मकसद है| वो ये कि ये लोग हाइड्रोजन के केंद्रक को हीलियम जैसे भारी एलिमेंट से फ्यूज कराया जाता है

हाइड्रोजन केंद्र के हीलियम से मिलने के बाद भारी मात्रा में रोशनी और गर्मी निकलती है| ये ठीक वैसा ही है, जैसा सूरज के अंदर हर समय होता रहता है| ITERके साथ दिक्कत ये है कि वो बजट से ऊपर चला गया है| निर्माण भी लेट हो रहा है| कई तरह की तकनीकी दिक्कतों का सामना कर रहा है|

JT-60SA के डिप्टी प्रोजेक्ट लीडर सैम डेविस कहते हैं कि ये मशीन लोगों को फ्यूजन एनर्जी की तरफ लेकर आएगी. इसे बनाने में 500 साइंटिस्ट और इंजीनियर्स लगे है| ये यूरोप और जापान की करीब 50 कंपनियों से आए है| यह दुनिया का सबसे एडवांस टोकामाक है| फ्यूजन एनर्जी के इतिहास में यह एक मील का पत्थर साबित होने वाला है| इस सदी के मध्य तक इसी तरह के न्यूक्लियर रिएक्टर से ऊर्जा मिलेगी| यह तकनीक पूरी दुनिया में फैलेगी|