बीएचयू अस्पताल के डॉक्टर बिहार के एक गरीब चायवाले की 10 साल की बच्ची का बीते 18 महीनों से फ्री इलाज कर रहे है| मासूम को बचाने में अबतक 60 लाख रुपये खर्च हो चुके है|राहत की बात ये है कि अब उसकी हालत में सुधार हो रहा है|
सरकारी अस्पतालों में तमाम दिक्कतों, संसाधन की कमी और जगह के अभाव के बावजूद भी आज भी डाॅक्टरों को ही भगवान के बाद दूसरा मसीहा माना जाता है|इसके पीछे समय-समय पर कई ऐसी नजीर समाज में पेश होती है| जो इस कथन को सिद्ध साबित करती है| ऐसा ही कुछ किया है वाराणसी के BHU ट्रामा सेंटर के डॉक्टरों ने|
बीएचयू अस्पताल के डॉक्टर बिहार के एक गरीब चायवाले की 10 साल की बच्ची का पिछले 547 दिनों से इलाज कर रहें है| वो भी निशुल्क मासूम बच्ची को बचाने में 60 लाख रुपए भी खर्च हो चुके है| इसका परिणाम यह हुआ कि बच्ची की हालत में अब सुधार हो रहा है और उम्मीद है कि मौत के मुंह से लौटी बच्ची एक महीने बाद ठीक भी हो जाएगी|
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान स्थित ट्रॉमा सेन्टर में 28 फरवरी 2022, को एक बच्ची प्रिया को भर्ती किया गया था| बिहार के रोहतास जिले के करगहर की रहने वाली बच्ची प्रिया 8 वर्ष की उम्र में स्कूल में गिर गई थी|जिससे उसकी सर्वाईकल स्पाइन में गंभीर चोट आई थी और रक्तस्राव हुआ था| शुरुआती इलाज में उसे पास के क्लिनिक में टांके लगाए गए|
इसके बाद भी बच्ची की हालत में सुधार देखने को नहीं मिला था| उसकी कमजोरी बढ़ती चली गई और चलने-फिरने में दिक्कत आने लगी| बिहार स्थित सासाराम के अस्पताल में मरीज का सीटी-स्कैन और एमआरआई करने के बाद डॉक्टरों ने ऑपरेशन का सुझाव दिया| इसके बाद मरीज को 28 फरवरी, 2022 को ट्रॉमा सेंटर, बीएचयू में लाया गया था|
बच्ची को न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रो. कुलवंत की निगरानी में भर्ती किया गया|अप्रैल 2022 में ट्रॉमा सेन्टर स्थित न्यूरो ओटी में बच्ची का ऑपरेशन किया जिसके बाद उसे ICU में ट्रांसफर कर दिया गया| और वेंटीलेटर सपोर्ट पर रखा गया| सर्जरी के बाद यह बच्ची लगभग 8 महीने से वेंटीलेटर सपोर्ट पर रही और कोई गतिविधि नहीं कर पा रही थी| लेकिन डॉक्टरों की मेहनत, बेहतरीन इलाज और देखभाल के चलते बच्ची की हालत में काफी सुधार हुआ है और अब उसे 1-2 घंटे के लिए रुक-रुक कर ही वेंटीलेटर सहायता की आवश्यकता होती है|
एनेस्थीसिया विभाग की प्रो. कविता ने बताया कि बच्ची न सिर्फ अपने माता पिता से संवाद कर पा रही है| बल्कि खाना भी खा रही है तथा व्हील चेयर की सहायता से गतिविधि भी कर पा रही है| उन्होंने बताया कि यह एक दुर्लभ मामला है| जिसमें मरीज़ की इच्छाशक्ति और जज़्बे और चिकित्सकीय देखभाल और इलाज से आश्चर्यजनक रूप बच्ची की हालत में सुधार देखने को मिला है|
वहीं चाय विक्रेता मुन्ना बच्ची के इलाज से काफी खुश है| मुन्ना के मुताबिक वे डेढ साल से BHU के ट्रामा सेंटर में अपनी बच्ची का इलाज करा रहे| लेकिन कभी भी उन्हे दिक्कत नहीं आई| डाॅक्टरों के इलाज के साथ ही उनकी बच्ची प्रिया को प्यार-दुलार भी अस्पताल से मिलता है| पैसे के अभाव के बावजूद कभी भी इलाज रूका नहीं|
वहीं BHU ट्रामा सेंटर प्रभारी प्रो सौरभ सिंह की मानें तो बेड, जांच और इलाज को मिलाकर वेंटीलेटर पर रहने वाले मरीज के पीछे प्रति दिन का खर्च औसतन 10 हजार रुपए आता है| प्रिया 18 महीने यानी 547 दिन वेंटीलेटर पर रही है| इस लिहाज से 55 लाख रुपए खर्च हो चुके है| तो वहीं लगभग 6 लाख रुपए बच्ची प्रिया के माता-पिता और परिजनों के रहने और खानपान में भी खर्च हुए हैं|