Swabhiman TV

Best News Online Channel

आला हजरत उर्स में पहुंचे देश दुनिया से लाखों जायरीन, कौन है आला हजरत जाने पूरा इतिहास

आला हजरत उर्स में पहुंचे देश दुनिया से लाखों जायरीन, कौन है आला हजरत जाने पूरा इतिहास

बरेली, 24 सितंबर। बरेली में आला हजरत के 104वे उर्स पर 2 बजकर 38 मिनट पर कुल की रस्म अदा की गई। उर्स में देश दुनिया से लाखों की संख्या के जायरीन बरेली पहुंचे। कुल की रस्म के वक्त शहर में कही भी पैर रखने की जगह नही थी। हर जगह जायरीन ही नजर आ रहे थे। पाकिस्तान छोड़कर बाकी दुनिया के अलग अलग देशों से मुस्लिम समाज के लाखो जायरीन बरेली पहुंचे।

शहर के इस्लामिया ग्राउंड और मथुरापुर में बड़ी संख्या में जायरीन ने नमाज अदा की। जैसे ही उर्स का वक्त शुरू हुआ तो जो जहां था वही रुक गया और सभी ने देश में अमन शांति के लिए दुआ की। नोवल्टी चौराहा, पटेल चौक, कुतुबखाना चौराहा, रोडवेज बस स्टैंड, चौपला चौराहा हर जगह सिर्फ और सिर्फ जायरीन ही नजर आ रहे थे। इस दौरान सुरक्षा के भी कड़े बंदोबस्त किए गए। खुद एडीजी राजकुमार, आईजी रमित शर्मा, कमिश्नर सेल्वा कुमारी जे, डीएम शिवाकांत द्विवेदी, एसएसपी अखिलेश चौरसिया, एसपी सिटी राहुल भाटी फील्ड में मौजूद रहे और पल पल का अपडेट लेते रहे। वही सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ, पीएसी, बीएसएफ, पुलिस के जवान, होमगार्ड, महिला पुलिस, ट्रैफिक पुलिस के साथ साथ दरगाह आला हजरत की तरफ से भी करीब 2 हजार वैलेंटियर लगाए गए। वही उर्स में सपा मुखिया अखिलेश यादव, आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की ओर से दरगाह पर चादर पेश की गई।

गौरतलब है की आला हजरत के मानने वाले न सिर्फ बरेली में है बल्कि पूरी दुनिया के है। आला हजरत की दरगाह बरेली के बिहारीपुर में है। आला हजरत ने करीब 1000 हजार किताबे कई भाषाओं में लिखी है। इसके अलावा करीब एक हजार फतवे भी जारी किए है। इस वक्त आला हजरत के परिवार की चौथी पीढ़ी दरगाह की गद्दी सम्हाल रही है।

इमाम ए अहले सुन्नत अल – हाफिज, अल- कारी अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी का जन्म 14 जून 1856 को बरेली में हुआ था। आला हजरत के पूर्वज सईद उल्लाह खान कंधार के पठान थे जो मुग़लों के समय में हिंदुस्तान आये थें। इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी के मानने वाले उन्हें आला हजरत के नाम से याद करते हैं। आला हज़रत बहुत बड़े मुफ्ती, आलिम, हाफिज़, लेखक, शायर, धर्मगुरु, भाषाविद, युगपरिवर्तक, तथा समाज सुधारक थे। जिन्हें उस समय के प्रसिद्ध अरब विद्वानों ने यह उपाधि दी। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में अल्लाह तआला व मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वसल्लम के प्रति प्रेम भर कर हज़रत मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नतों को जीवित कर के इस्लाम की सही रूह को पेश किया, आपके वालिद साहब ने 13 वर्ष की छोटी सी आयु में अहमद रज़ा को मुफ्ती घोषित कर दिया। उन्होंने 55 से अधिक विभिन्न विषयों पर 1000 से अधिक किताबें लिखीं जिन में तफ्सीर हदीस उनकी एक प्रमुख पुस्तक जिस का नाम “अद्दौलतुल मक्किया ” है जिस को उन्होंने केवल 8 घंटों में बिना किसी संदर्भ ग्रंथों के मदद से हरम शरीफ़ में लिखा। उनकी एक और प्रमुख किताब फतावा रजविया इस सदी के इस्लामी कानून का अच्छा उदाहरण है जो 13 विभागों में वितरित है। इमाम अहमद रज़ा खान ने कुरान ए करीम का उर्दू अनुवाद भी किया जिसे कंजुल ईमान नाम से जाना जाता है, आज उनका तर्जुमा इंग्लिश, हिंदी, तमिल, तेलुगू, फारसी, फ्रेंच, डच, स्पैनिश, अफ्रीकी भाषा में अनुवाद किया जा रहा है, आला हज़रत ने पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान को घटाने वालो को क़ुरआन और हदीस की मदद से मुंह तोड़ जवाब दिया।