हाई कोर्ट के आदेश का पालन कराने गए अमीन पर रिपोर्ट दर्ज करना न्यायपालिका पर हमला
न्यायाधीश को डराने की कोशिश, इस तरह से स्थापित होगा पुलिस स्टेट
बरेली, 17 सितंबर। वाराणसी में ज्ञानवापी प्रकरण में चर्चा में आए न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ब्यूरोक्रेसी से काफी आहत हुए है। उन्होंने पुलिस प्रशासन पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा की अफसर मुख्यमंत्री को भी गुमराह करने का काम कर रहे है। उन्होंने कहा मैं सिर्फ ईश्वर से डरता हू इसके अलावा किसी से नहीं अगर ऐसा ही चलता रहा तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।
भाजपा विधायक डॉ एम पी आर्या के अस्पताल के अवैध गेट को कोर्ट के आदेश पर पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में बंद कराने के लिए गए कोर्ट के अमीन पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया। इस की शिकायत कोर्ट अमीन ने जब न्यायाधीश से की तो उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है की जानबूझकर एफआईआर लिखकर न्यायाधीश को डराने की कोशिश की गई है। ये न्यायपालिका पर बड़ा हमला है।
लघु वाद न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने अपने आदेश में कहा कि इस संबंध में मैं इस तथ्य का उल्लेख करना आवश्यक समझता हूँ कि न्यायालय अमीन के द्वारा न्यायालय के आदेश के अनुक्रम में अपने दायित्वों का निवर्हन किया जा रहा था और स्थानीय पुलिस के द्वारा अमीन के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर ली गयी। इस संबंध में भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 78 उल्लेखनीय है। धारा 78 यह प्रावधान करती है कि न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुक्रम में यदि कोई कार्य किया जाता है तो वह अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा। प्रश्नगत प्रकरण में अमीन के द्वारा न्यायालय के आदेश के अनुक्रम में कार्य किया गया। मौके पर एसडीएम फरीदपुर, सीओ नवाबगंज, तहसीलदार नवाबगंज मय पुलिस बल मौजूद थे। जब तमाम प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे तो मात्र न्यायालय अमीन के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाना सीधे न्यायपालिका को डराने जैसा है। जिला पुलिस प्रशासन द्वारा जिस साहस का परिचय इस प्रकरण में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराकर दिया गया है। यदि जिला पुलिस प्रशासन इस साहस का प्रयोग अपराधियों के विरूद्ध कर पाती तो कुछ वांछित परिणाम प्राप्त होते।
न्यायालय द्वारा 11 अगस्त को जब रिट परवाना जारी किया गया था तो थानाध्यक्ष अशोक कुमार कम्बोज, 200-250 लोग विवादित स्थल पर उपस्थित थे। अतः न्यायालय के आदेश का अनुपालन करवाने हेतु भारी पुलिस बल, पीएसी बल, रेपिड एक्शन फोर्स तथा कार्यपालक मजिस्ट्रेट की आवश्यकता है। अतः स्पष्ट है कि निर्णीतऋणी इतना प्रभावी व्यक्ति है कि स्थानीय पुलिस द्वारा भी न्यायालय के आदेश का पालन नहीं करवाया जा सका।
न्यायाधीश ने आगे कहा कि प्रायः यह देखने में भी आता है कि सामान्तः जिला प्रशासन के अधिकारी अपने अंहकार अथवा घमण्ड में रहने के कारण न्यायालय के आदेश का अनुपालन करवाना उचित नहीं समझते हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा समय-समय पर पारित आदेशों का भी अनुपालन प्रशासनिक अधिकारी तब तक नहीं करते हैं जब तक कि उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही नहीं की जाती है अथवा अवमानना की कार्यवाही में उन्हें जरिये एनबीडब्लू तलब नहीं किया जाता। उच्चतम न्यायालय द्वारा भी समय-समय पर उत्तर प्रदेश में नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों के संबंध में न्यायालय के आदेशों का अनुपालन न करने के संबंध में सख्त टिप्पणियां की गयी है। एक आम आदमी को भी शायद ही इस बात की जानकारी होती हो कि एक प्रशासनिक अधिकारी के अंहकार अथवा घमण्ड के कारण जब वह उच्च न्यायालय के आदेशों का अनुपालन नहीं करता है और उसके विरूद्ध अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाती है। अथवा उच्च न्यायालय द्वारा संबंधित अधिकारी
पर फाइन आदि लगाया जाता है, तब उत्तर प्रदेश सरकार उस आदेश के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में जाती है तो सरकार का भारी मात्रा में धन व्यय होता है जो धन भारत की जनता से कर के रूप में अर्जित किया जाता है। इससे आम जनता के धन का दुरूपयोग होता है। जिला प्रशासन के अधिकारी बातों को सही तरीके से मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के समक्ष भी नहीं रखते हैं, बल्कि अपने व्यक्तिगत हितों को दृष्टिगत रखते हुए बातें मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश के समक्ष रखते हैं।
न्यायालय अमीन के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाना न्यायाधीश को डराने जैसा तथा न्यायपालिका पर हमला है। यदि पुलिस के द्वारा यह आचरण किया जायेगा तो भारत जैसा लोकतान्त्रिक देश पुलिस स्टेट के रूप में स्थापित हो जायेगा और पुलिस को यह स्वतन्त्रता होगी कि वह जैसा व्यवहार चाहे वैसा करे। भारतवर्ष ने इमरजेंसी का दंश झेला है और पुलिस स्टेट की खामियां भी देखी हैं। इमरजेंसी में देश पुलिस स्टेट के रूप में परिवर्तित हो गया था और पुलिस मनमाने पूर्ण ढंग से कार्य करती थी। लोकतन्त्र को सदैव पुलिस स्टेट से खतरा रहा है। भारतवर्ष में पुलिस प्रशासन अभी भी अंग्रेजों के जमाने में बने पुलिस ऐक्ट, 1861 से गवर्न होता है। अंग्रेजों की मंशा सदैव भारतवर्ष को गुलाम रखने की थी और भारतवर्ष पर राजशाही शासन करने की थी और इसी उद्देश्य से पुलिस बल का गठन किया गया, लेकिन भारतवर्ष के आजाद होने के पश्चात भी पुलिस की मानसिकता में जो परिवर्तन होना चाहिए था शायद वह अभी तक नहीं हो पाया।
जिला पुलिस प्रशासन के इस व्यवहार से मैं बहुत आहत एवं दुखी हूँ। इस संबंध में मैं अपने व्यक्तिगत विचार भी व्यक्त करने से अपने आपको नहीं रोक पा रहा हूँ। मुझे मेरे माता-पिता के द्वारा प्रारम्भ से यह शिक्षा दी गयी कि सदैव भगवान से डरो और किसी अन्य शक्ति से नहीं अतः मैं ईश्वरी शक्ति के सिवाय यदि अन्य शक्तियों से मैं भयग्रस्त होने लगूगा तो आम जनता जो न्यायालय पर विश्वास करके आती है कि न्यायाधीश निष्पक्ष एवं निडर हो के कार्य करेगे, पूर्णतः असंगत हो जायेगा। यदि अन्य कोई शक्ति से मैं भयग्रस्त हुआ तो मेरे लिये यह उचित होगा कि मैं इस पवित्र न्यायकि संस्था से त्यागपत्र दे दूँ। मुझे यह गौरव प्राप्त हुआ है कि मैं उस इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहा हूँ, जो सदैव लोकतन्त्र की रक्षा हेतु सजग प्रहरी रही है और जिस इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का इलेक्शन रदद किया तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को पुर्नस्थापित (Re-instate) किया।
अतः पुलिस के द्वारा अपनी शक्तियों का घोर दुरूपयोग कर न्यायालय के आदेश के अनुक्रम में कार्य कर रहे न्यायालय अमीन के विरुद्ध न्यायपालिका को डराने के उद्देश्य से एफआईआर लिखवायी गयी जो कि कानून का सरासर घोर उल्लंघन है और पुलिस अधिकारियों के द्वारा अपनी अधिकारों से परे जाकर कार्य किया गया। उक्त एफआईआर दर्ज करने वाले तत्कालीन थानाध्यक्ष नवाबगंज अशोक कुमार कम्बोज और क्षेत्राधिकारी नवाबगंज चमन सिंह चावड़ा के विरूद्ध आईपीसी 1880 की धारा 217 तथा 218 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध बनता है। उपरोक्त प्रकरण में बिना जिले के उच्च अधिकारियों के मौखिक निर्देश पर ही उपरोक्त प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखी गयी होगी, क्योंकि मैंने 13 साल की न्यायिक सेवा में कभी यह नहीं देखा कि न्यायालय के आदेश के अनुक्रम में अमीन द्वारा अपने दायित्वों का निवर्हन करने के कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखवायी गयी हो। इसलिए आईजी रमित शर्मा बरेली से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही करना सुनिश्चित करें। इस आदेश की एक प्रति पुलिस महानिदेशक, पुलिस मुख्यालय, लखनऊ तथा मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश शासन सचिवालय लखनऊ को भी आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजी जाये। वही इस मामले में 26 सितंबर अगली तारीख रखी गई है।