ल्होनक झील सिक्किम के उन 14 ग्लेशियल लेक में से एक है, जिनके फटने का अंदेशा पहले से जताया गया था| वैज्ञानिकों ने इसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के प्रति बेहद संवेदनशील बताया था| केंद्र सरकार ने इस साल 29 मार्च को संसद में एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें बताया गया था कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे है|

गंगटोक: भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित राज्य सिक्किम में बीती रात एक आपदा ने बड़े पैमाने पर नुकसान किया| बादल फटने की वजह से तीस्ता नदी में आए उफान ने भारतीय सेना के कैम्प को अपनी चपेट में ले लिया, जिसमें 23 जवान बह गए| ये सभी लापता हैं और उनकी तलाश जारी है| सेना के कई प्रतिष्ठानों को भी काफी नुकसान पहुंचा है, 41 गाड़ियां पानी के साथ आए मलबे में दब गईं| इस आपदा ने 2013 की केदारनाथ त्रासदी की याद ताजा कर दी| सिक्किम में भी वही हुआ, जो केदारनाथ में हुआ था|

सिक्किम के उत्तरी हिस्से में पड़ता है मंगन जिला. चुंगथांग इसका ऊंचाई वाला इलाका है, जिसकी गोद में है साउथ ल्होनक लेक| जो मीठे पानी की प्राकृतिक झील ​है| ल्होनक लेक की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 17000 फीट है| यह झील करीब 260 फीट गहरी, 2 किलोमीटर लंबी और आधा किलोमीटर चौड़ी है| मंगलवार की रात इसी झील के ऊपर बादल फट गया| अचानक बहुत बड़ी मात्रा में पानी इस लेक के कैचमेंट एरिया में आ गिरा| इसके कारण झील की दीवारें टूट गईं| चूंकि यह​ झील ऊंची पहाड़ियों के बीच है, इसलिए पानी तेजी से निचले इलाकों की ओर आने लगा|

केदारनाथ त्रासदी का जो कारण था, वहीं सिक्किम में हुआ

झील से निकला पानी नदी में आकर समाया और तीस्ता उफान पर आ गई. चूंकि 17000 फीट की ऊंचाई से बहुत सारा पानी तेजी से नीचे आ रहा था, इसलिए उसमें पत्थर और मलबा भी बहकर आया| जिस तीस्ता नदी का रंग हल्का हरा होता है, उसके जलस्तर में अचानक 20 फीट की बढ़ोतरी हो गई| वह पीले और मटमैले रंग में बहने लगी| लाचेन घाटी में ण्क तरह से जल विस्फोट हो गया| तीस्ता के जल स्तर में अचानक वृद्धि से घाटी में कई सैन्य प्रतिष्ठान बह गए, जिसमें 23 जवान भी शामिल है| इसके अलावा, दर्जनों घर और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे भी क्षतिग्रस्त हो गए|

ल्होनक झील के फटने का अंदेशा पहले से जताया गया था

ल्होनक झील सिक्किम के उन 14 ग्लेशियल लेक में से एक है, जिनके फटने का अंदेशा पहले से जताया गया था| वैज्ञानिकों ने इसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के प्रति बेहद संवेदनशील बताया था| केंद्र सरकार ने इस साल 29 मार्च को संसद में एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें बताया गया था कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे है| हिमालय से निकलने वाली नदियों का जलस्तर किसी भी समय प्राकृतिक आपदा ला सकता है| सरकार ने माना है कि ग्लेशियरों के पिघलने से ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF), ग्लेशियर एवलॉन्च, हिमस्खलन आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है|

हिमालय के ग्ले​शियर 10 गुना ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं

संसद में पेश रिपोर्ट में बताया गया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है| हिमालय में ठंडे दिन-रात की संख्या कम हो रही है और गर्म दिन-रात की संख्या बढ़ रही है| गत 3 दशक में ठंडे दिन-रात में 2 से 6 फीसदी की कमी आई है| फिलहाल दो दर्जन ग्लेशियरों पर वैज्ञानिक नजर रख रहे है| इनमें गंगोत्री, चोराबारी, दुनागिरी, डोकरियानी और पिंडारी मुख्य है| यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 14,798 ग्लेशियरों की स्टडी की| उन्होंने बताया कुछकि बीते  दशकों में हिमालय के ग्ले​शियर पहले की तुलना में 10 गुना ज्यादा तेजी से पिघल रहे है| इनके मेल्ट होने से जो पानी निकला है उससे समुद्र के जलस्तर में 0.92 से 1.38 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है|

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