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एक बिहारी सब पर भारी l

एक बिहारी सब पर भारी ! यह लाइने नीतीश कुमार पर बिल्कुल फिट बैठती है हालांकि पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई पर इन पंक्तियों का इस्तेमाल होता था पर आज इसकी दावेदारी सिर्फ और सिर्फ नीतीश कुमार की है l बिहार में राजनीतिक हलचल मची हुई है नीतीश कुमार ने आठवीं बार मुख्यमंत्री बनकर ”राजनीति ” शब्द को साकार कर दिया l

हाल ही में बीजेपी का साथ छोड़कर तेजस्वी यादव का हाथ थाम कर नीतीश कुमार ने महागठबंधन को गले लगा लिया l कुल 7 दलों को मिलाकर लगभग 164 विधायकों का समर्थन नीतीश ने राज्यपाल को सौंपा है l अब देखना यह है कि इन 7 दलों के कौन-कौन से विधायक मंत्रिमंडल में शामिल होंगे, इस बात की खींचतान अभी से ही शुरू हो गई है l

इधर जीतन राम मांझी भी पशोपेश में है l मंत्रिमंडल विस्तार ना होने से खासे नाराज भी है l पिछले मंत्रिमंडल में जीतन राम के पास लघु सिंचाई व एससी एसटी कल्याण विभाग था मंत्रिमंडल का विस्तार ना होने से जीतन राम की भी मुश्किलें बढ़ी हुई दिखाई दे रही हैं क्योंकि इस बार दावेदार ज्यादा और मंत्री पद सीमित है बावजूद इसके इस बार भी वह दो विभागों की उम्मीद में है l

हालांकि जीतन राम मांझी जानते हैं कि इस राजनीतिक उठापटक में इस बार उनकी पार्टी (HAM) हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के 4 विधायकों की सपोर्ट के बिना भी सरकार बन सकती है और वह अच्छी तरह जानते हैं कि 2015 में वह ठीक से मुख्यमंत्री पद संभाल नहीं पाए थे और महज 10 महीनों में ही उनको गलत बयानी के कारण मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए पार्टी ने कहा जिस पर वह राजी नहीं हुए और और बाद में बहुमत सिद्ध ना कर पाने पर उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था l

तेजस्वी यादव के उप मुख्यमंत्री बनते ही 10 लाख रोजगार देने चुनावी वादे का सवाल उठ खड़ा हुआ है, गौरतलब यह है कि इस वक्त की बिहार की सबसे बड़ी पार्टी RJD है अगर तेजस्वी यादव चाहे तो बगैर नीतीश कुमार के खुद मुख्यमंत्री बनने का दावा पेश कर सकते हैं लेकिन उसके लिए उनको बीजेपी को छोड़कर कॉन्ग्रेस ,वामदल और अन्य के साथ साथ जीतन राम मांझी के 4 विधायक और AIMIM का सहारा लेना पड़ सकता है बावजूद उसके तेजस्वी यादव सिर्फ उपमुख्यमंत्री पद ग्रहण करके महागठबंधन के साथ नीतीश का साथ दे रहे हैं तो जरूर यह कोई सोची-समझी दूर की राजनीतिक चाल है l