*सूर्य ग्रहण में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, जानने के लिए देखे ये पंचाग*

*🌞~ हिन्दू पंचांग ~🌞*

*⛅दिनांक – 25 अक्टूबर 2022*
*⛅दिन – मंगलवार*
*⛅विक्रम संवत् – 2079*
*⛅शक संवत् – 1944*
*⛅अयन – दक्षिणायन*
*⛅ऋतु – हेमंत*
*⛅मास – कार्तिक (गुजरात एवं महाराष्ट्र में अश्विन मास)*
*⛅पक्ष – कृष्ण*
*⛅तिथि – अमावस्या शाम 04:18 तक तत्पश्चात प्रतिपदा*
*⛅नक्षत्र – चित्रा दोपहर 02:17 तक तत्पश्चात स्वाती*
*⛅योग – विष्कम्भ दोपहर 12:32 तक तत्पश्चात प्रीति*
*⛅राहु काल – दोपहर 03:15 से 04:41 तक*
*⛅सूर्योदय – 06:41*
*⛅सूर्यास्त – 06:06*
*⛅दिशा शूल – उत्तर दिशा में*
*⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:00 से 05:52 तक*
*⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 11:59 से 12:49 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण – खंडग्रास सूर्यग्रहण*
*⛅विशेष – अमावस्या के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है ।*
*(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
*प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है ।*
*(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

*🌹 25 अक्टूबर 2022 – खण्डग्रास सूर्यग्रहण 🌹*

*🌹 सूर्यग्रहण सम्बंधित महत्त्वपूर्ण बातें 🌹*

*🔹 ग्रहण काल – 25 अक्टूबर शाम 04:30 से 06:06 तक*
*🔹 सूतक काल – 25 अक्टूबर प्रातः 04:30 से ग्रहण समाप्त होने तक*

*🌹 सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए । बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं ।*

*🌹 ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक ‘अरुन्तुद’ नरक में वास करता है ।*

*🌹 सूतक से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसी-पत्र डाल के रखें ताकि सूतक काल में उसे उपयोग में ला सकें । ग्रहणकाल में रखे गये पानी का उपयोग ग्रहण के बाद नहीं करना चाहिए किंतु जिन्हें यह सम्भव न हो वे उपरोक्तानुसार कुशा आदि डालकर रखे पानी को उपयोग में ला सकते हैं ।*

*🌹 ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते । पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए ।*

*🌹 ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए ।*

*🌹 ग्रहण पूरा होने पर स्नान के बाद सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर अर्घ्य दे कर भोजन करना चाहिए ।*

*🌹 ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए । स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं ।*

*🌹 ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए ।*

*🌹 ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है ।*

*🌹 ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए ।*

*🌹 ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन – ये सब कार्य वर्जित हैं ।*

*🌹 ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए ।*

*🌹 ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है । गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए ।*

*🌹 भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं – सामान्य दिन से सूर्यग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) दस लाख गुना यदि गंगाजल पास में हो तो सूर्यग्रहण में 10 करोड़ गुना फलदायी होता है ।*

*🌹 ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है ।*

*🌹 ग्रहण के समय उपयोग किया हुआ आसन, माला, गोमुखी ग्रहण पूरा होने के बाद गंगा जल में धो लेना चाहिए ।*

*🌹 ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है । (स्कन्द पुराण)*

*🌹 ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए । (देवी भागवत)*

*🌹 नूतन वर्ष : 26 अक्टूबर 2022 🌹*

*🌹 दीपावली का दिन वर्ष का आखरी दिन है और बाद का दिन वर्ष का प्रथम दिन है, विक्रम सम्वत् के आरम्भ का दिन है (गुजराती पंचांग अनुसार) । उस दिन जो प्रसन्न रहता है, वर्ष भर उसका प्रसन्नता से जाता है ।*

*🌹‘महाभारत में भगवान व्यासजी कहते हैं :*
*‘हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है, उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में व्यतीत होता है ।*

*🌹दीपावली के दिन, नूतन वर्ष के दिन मंगलमय चीजों का दर्शन करना भी शुभ माना गया है, पुण्य-प्रदायक माना गया है । जैसे :*
*उत्तम ब्राह्मण, तीर्थ, वैष्णव, देव-प्रतिमा, सूर्यदेव, सती स्त्री, संन्यासी, यति, ब्रह्मचारी, गौ, अग्नि, गुरु, गजराज, सिंह, श्वेत अश्व, शुक, कोकिल, खंजरीट (खंजन), हंस, मोर, नीलकंठ, शंख पक्षी, बछड़ेसहित गाय, पीपल वृक्ष, पति-पुत्रवाली नारी, तीर्थयात्री, दीप क, सुवर्ण, मणि, मोती, हीरा, माणिक्य, तुलसी, श्वेत पुष्प, फल, श्वेत धान्य, घी, दही, शहद, भरा हुआ घड़ा, लावा, दर्पण, जल, श्वेत पुष्पों की माला, गोरोचन, कपूर, चाँदी, तालाब, फूलों से भरी हुई वाटिका, शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा, चंदन, कस्तूरी, कुंकुम, पताका, अक्षयवट (प्रयाग तथा गया स्थित वटवृक्ष), देववृक्ष (गूगल), देवालय, देवसंबंधी जलाशय, देवता के आश्रित भक्त, देववट, सुगंधित वायु, शंख, दुंदुभि, सीपी, मूँगा, स्फटिक मणि, कुश की जड, गंगाजी की मिट्टी, कुश, ताँबा, पुराण की पुस्तक, शुद्ध और बीजमंत्रसहित भगवान विष्णु का यंत्र, चिकनी दूब, रत्न, तपस्वी, सिद्ध मंत्र, समुद्र, कृष्णसार (काला) मृग, यज्ञ, महान उत्सव, गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध, गोधूलि, गौशाला, गोखुर, पकी हुई खेती से भरा खेत, सुंदर (सदाचारी) पद्मिनी, सुंदर वेष, वस्त्र एवं दिव्य आभूषणों से विभूषित सौभाग्यवती स्त्री, क्षेमकरी, गंध, दूर्वा, चावल और अक्षत (अखंड चावल), सिद्धान्न (पकाया हुआ अन्न) और उत्तम अन्न- इन सबके दर्शन से पुण्यलाभ होता है ।*
*(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्णजन्म खंड, अध्याय : ७६ एवं ७८)*

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By Anup

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