ऋग्वेद की सैकड़ों साल पुरानी एक कॉपी फिलहाल पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में रखी हुई है| इसकी देखरेख के लिए लंबा-चौड़ा स्टाफ है, लगभग रोज पांडुलिपि को खोलता और चेक करता है| यहां और भी प्राचीन किताबें रखी हुई हैं| सुरक्षित रखने के लिए किसी किताब को धुआं दिया जाता है, तो किसी को केमिकल प्रोसेस से गुजारते हैं|

जी-20 के कल्चर कॉरिडोर में रखने के लिए ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपि मंगवाई गई| देश-विदेश से आए डिप्लोमेट इसे देख और इस बारे में समझ सकेंगे| साल 2007 में यूनेस्को ने ऋग्वेद को वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया| जानिए, दुनिया के सबसे पहले धर्मग्रंथों में शामिल ये वेद फिलहाल कहां रखा है| उसे सहेजने के लिए कैसी केमिकल प्रोसेस का इस्तेमाल होता है|

क्या है ऋग्वेद में?

ऋग्वेद को दुनिया की पहली पुस्तक और पहला धर्मग्रंथ माना जाता है| कहते हैं कि ये ईश्वर ने खुद ऋषियों को सुनाया था| बोलचाल की भाषा में समझें तो वेद यानी ज्ञान| दुनिया के ज्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि ऋग्वेद ही इंडो-यूरोपियन फैमिली की पहली लिखित चीज है| इतिहासकारों के मुताबिक इसे 15 सौ से 1000 ईसा पूर्व पहली बार लिखा गया| वैसे इसकी कोई निश्चित तारीख नहीं है, लेकिन ज्यादा स्कॉलर इसी वक्त को उसके डॉक्युमेंटेशन का समय मानते हैं|

इसमें कुल 1028 सूक्तियां हैं, जो वेद मंत्रों का समूह हैं|ज्यादातर सूक्तियां देवताओं की स्तुति से जुड़ी हैं, लेकिन कुछ सूक्तियां मानव जीवन के दूसरे पहलुओं पर भी बात करती हैं, जैसे औषधियों की| ऋग्वेद में लगभग 125 ऐसी औषधियों का जिक्र है, जो शरीर और मन की सेहत बनाए रखने में मदद करती हैं|

चूंकि ये श्रुत यानी सुनकर लिखे हुए दस्तावेज हैं इसलिए कई बार इसपर विवाद भी हुआ| हालांकि वेदों को दुनिया की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत माना जाता है|मशहूर भारतविद और भाषाविज्ञानी प्रोफेसर एफ मैक्स मुलर ने ऋग्वेद को एनालाइज करते हुए इन्हीं पांडुलिपियों की मदद ली थी, और माना था कि इसमें अब भी बहुत कुछ है जो सीखा जा सकता है|

सबसे पुरानी और शुद्ध प्रति यहां रखी हुई

ऋग्वेद की सबसे पुरानी प्रति भोजपत्र पर लिखी हुई है, जिसे पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (BORI) में रखा गया| इनमें से एक पांडुलिपि शारदा स्क्रिप्ट में लिखी हुई है, जबकि बाकी 29 मेनुस्क्रिप्ट देवनागरी में हैं|इनमें बहुत से ऐसे फीचर हैं, शब्दों के ऐसे उच्चारण हैं, जो फिलहाल कहीं नहीं दिखते|

ये कॉपी 5 सौ साल से भी पुरानी है, जिसे जर्मन प्रोफेसर जोहान जॉन बुहलर ने सहेजकर रखा था| ये भारतीय भाषाओं और धर्म पर काम करते थे| हालांकि बुहलर के पास ये कॉपी कहां से आई, इसपर ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है|

सागौन की अलमारियों में रखा हुआ है

मेनुस्क्रिप्ट बर्मीज सागौन की अलमारियों में रखे हुए हैं| भोजपत्र वाली कॉपीज को पतले कपड़ों और टिश्यू पेपर के साथ रखा गया, जबकि जो पांडुलिपियां कागज की हैं, उन्हें मजबूत कार्डबोर्ड वाले बॉक्सों में लाल कपड़े से ढंककर फिर अलमारी में रखा गया|

क्या-क्या है BORI के पास?

साल 1917 में बने BORI का काम बेहद पुरानी पांडुलिपियों और दुर्लभ किताबों को सहेजना है| लंबे-लंबे कमरों और ऊंची सीलिंग वाले इंस्टीट्यूट में भारत ही नहीं, दुनियाभर की 28 हजार से ज्यादा मेनुस्क्रिप्ट रखी हुई हैं| ये संस्कृत, अरेबिक, पर्शियन, उर्दू, प्राकृत और कई दूसरी भारतीय भाषाओं में है| यहां तक कि इस संस्थान में पहली इस्लामिक कैलीग्राफी, जिसे नक्ष कहते हैं, वो भी संभालकर रखी हुई है| यहां पर भोजपत्र पर लिखी 140 मेनुस्क्रिप्ट हैं, जबकि 50 से ज्यादा कॉपीज ताड़पत्र पर लिखी हुई हैं|

इस तरह होती है देखभाल

हर दिन यहां ट्रेंड स्टाफ हरेक किताब को खोलकर ध्यान से देखता है कि उसमें कोई नमी, या दीमक जैसी चीजें तो नहीं लग रहीं| छोटे से छोटा डैमेज भी नजरअंदाज नहीं किया जाता| धूल साफ की जाती है| इसके बाद इन्हें वापस लाल कपड़ों में लपेटकर शेल्व्स में रख दिया जाता है|

हर किताब को सहेजने का तरीका अलग है, जो इसपर तय होता है कि वो किस चीज से बनी है, यानी कागज है, ताड़पत्र या भोजपत्र| भोजपत्र में पेड़ की छाल पर पत्तों के रंगों से लिखा जाता था, जबकि ताड़पत्र में पेड़ के पत्तों पर रंग या खास तरह से बनी स्याही इस्तेमाल होती थी|

अलग किताब के संरक्षण का तरीका भी अलग

कुछ किताबों को धुआं दिखाया जाता है ताकि दीमक और नमी खत्म हो जाए| लेकिन ये उतनी ही देर और उतनी ही तेजी से होता है, जिससे स्याही न उड़े. कुछ को ड्राई ब्रशिंग की जरूरत होती है| कई किताबों में एसिडिटी जांचने के लिए उसका pH टेस्ट भी होता है| अगर ये ज्यादा है तो उसे डी-एसिडिफिकेशन से गुजारा जाता है ताकि किताब ज्यादा से ज्यादा समय तक सेफ रह सके| इंस्टीट्यूट अब किताबों का डिजिटल एडिशन भी बना रहा है ताकि अगर कोई किताब किसी वजह से खत्म भी हो जाए तो तो ऑनलाइन मिल सके|

कितनी तरह के हैं वेद?

ऋग्वेद- ये सबसे पहला वेद है, जो पद्यात्मक है| इसमें इंद्र, अग्नि, रुद्र,वरुण, मरुत, सवित्रु ,सूर्य और दो अश्विनी देवताओं की स्तुति है| इसकी कई शाखाएं भी हैं|

यजुर्वेद- इसमें अग्नि के जरिए देवताओं की दी जाती आहुति के बारे में बताया गया| यज्ञ की विधियों और मंत्रों के अलावा यहां तत्वज्ञान भी मिलता है|

सामवेद- साम का मतलब है गीत-संगीत|इसमें संगीत पर खासा जोर दिया गया. इसे सामगान भी कहते हैं|

अथर्ववेद- इस वेद में आयुर्वेद, रहस्यमयी विद्याओं का जिक्र है| यहां बीमारियों के इलाज से लेकर धन प्राप्ति के तरीके भी बताए गए|
वेदों के अलावा 4 उपवेदभी हैं, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद और अर्थशास्त्र|