स्वाभिमान टीवी, डेस्क। एक बार फिर उमर अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गए हैं। बुधवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। उमर शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शामिल होने के लिए विपक्षी गठबंधन के तमाम नेता भी श्रीनगर पहुंचे।
गौरतलब हो कि जम्मू कश्मीर में करीब 10 साल बाद चुनाव कराए गए। जम्मू कश्मीर में कुल 90 विधानभाएं हैं। चुनाव में फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में बहुमत हासिल किया। इसके अतिरिक्त कुछ निर्दलीय और अन्य दलों के विधायकों ने भी सरकार को समर्थन दिया है।
10 साल बाद फिर अब्दुल्ला परिवार जम्मू कश्मीर की सत्ता में वापस आ गया है। जानकारी हो कि जम्मू कश्मीर के गठन के बाद अधिकतर सरकारें कुछ परिवारों ने ही चलाई है। इनमें अब्दुल्ला परिवार भी है जिसकी नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी ने राज्य को कई मुख्यमंत्री दिए हैं। आइये जानते हैं नेशनल कॉन्फ्रेंस और अब्दुल्ला परिवार की पूरी कहानी…
स्वतंत्रता से पहले हुआ था नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठन
गौरतलब हो कि अक्तूबर 1932 में फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी। नेकां की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार शेख ने मीरवाइज यूसुफ शाह और चौधरी गुलाम अब्बास के साथ मिलकर इस पार्टी का गठन किया था। 11 जून 1939 को ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस का नाम बदल गया। अब इसका नाम बदलकर ऑल जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस कर दिया गया।
इसके साथ ही ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में कई बदलाव हो गए। जहां पार्टी नेतृत्व का एक धड़ा अलग हो गया, तो वहीं दूसरी तरफ ऑल इंडिया मुस्लिम लीग से संबंध रखते हुए मुस्लिम कॉन्फ्रेंस को फिर से स्थापित किया गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑल इंडिया स्टेट्स पीपल्स कॉन्फ्रेंस से जुड़ी थी। 1947 में शेख अब्दुल्ला इसके अध्यक्ष चुने गए। 1946 में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने राज्य सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के खिलाफ था।
क्या हुआ देश की आजादी के बाद
सितंबर 1951 में हुए चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सभी 75 सीटें जीतीं। शेख अब्दुल्ला अगस्त 1953 में भारत के खिलाफ साजिश के आरोप में बर्खास्त होने तक प्रधानमंत्री बने रहे। शेख अब्दुल्ला को 9 अगस्त 1953 को गिरफ्तार कर लिया गया। बता दें 1965 तक जम्मू कश्मीर के संविधान के तहत राज्य में प्रधानमंत्री का पद होता था। 28 मार्च 1965 को राज्य संविधान में अपनाए गए छठे संशोधन द्वारा सदर-ए-रियासत को राज्यपाल और राज्य के प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया गया।
कांग्रेस में हुआ विलय
बता दें 1965 में नेशनल कॉन्फ्रेंस का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय हो गया। इसके साथ ही यह कांग्रेस की जम्मू कश्मीर शाखा बन गई। शेख अब्दुल्ला को देश के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में 1965 में फिर से 1968 तक गिरफ्तार किया गया। अब्दुल्ला को केंद्र सरकार के साथ एक समझौते के बाद फरवरी 1975 में सत्ता में लौटने की अनुमति मिल गई। उसी दौरान शेख अब्दुल्ला के ‘प्लेबिसाइट फ्रंट’ गुट ने मूल पार्टी अर्थात नेशनल कॉन्फ्रेंस का नाम ले लिया।
पिता की मृत्यु के बाद फारुख ने संभाली कुर्सी
1977 के विधानसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीत दर्ज की और शेख अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। 8 सितंबर 1982 को शेख की मृत्यु के बाद उनके बेटे फारुख अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। जून 1983 के चुनावों में फारुख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने फिर से स्पष्ट बहुमत हासिल किया।
फारुख के परिवार ने ही तोड़ी पार्टी
गौरतलब हो कि जुलाई 1984 में फारुख अब्दुल्ला के जीजा गुलाम मोहम्मद शाह ने पार्टी को विभाजित कर दिया। राज्यपाल ने फारुख की जगह गुलाम मोहम्मद शाह को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। मार्च 1986 में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
1987 के विधानसभा चुनावों में नेकां ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। बहुमत हासिल कर फारुख फिर से मुख्यमंत्री बने। 1990 में घाटी में बेकाबू होते हालात के चलते केंद्र सरकार ने अब्दुल्ला सरकार को बर्खास्त कर दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। 1991 में राज्य के चुनाव रद्द कर दिए गए। ये वही दौर था जब कश्मीर ने आतंकवाद का चरम देखा।
फारुख के बेटे उमर अब्दुल्ला ने संभाली सत्ता
हालात सुधरने के बाद 1996 में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में नेकां को फिर से सफलता मिली। पार्टी ने उस चुनाव में 87 में से 57 सीटें जीतीं। फारुख अब्दुल्ला ने 2000 में मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया, जिसके बाद उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने राज्य की सत्ता संभाली। 2002 के विधानसभा चुनावों में नेकां केवल 28 सीटें ही जीत सकी। इस चुनाव में जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी अर्थात पीडीपी कश्मीर घाटी में सत्ता के दावेदार के रूप में उभरी।
दिसंबर 2008 के विधानसभा चुनावों में कोई भी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाई। उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेकां 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। चुनावों के बाद 30 दिसंबर 2008 को नेकां ने 17 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। उमर अब्दुल्ला 5 जनवरी 2009 को इस गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने। वह जम्मू और कश्मीर राज्य के सबसे युवा और 11वें मुख्यमंत्री बने। उमर 1998 से 2009 के बीच श्रीनगर लोकसभा के सदस्य भी रहे हैं।
दस साल पहले विधानसभा चुनाव में नेकां का हुआ बुरा हाल
2014 के जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने नेकां के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया। पार्टी ने सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा परंतु केवल 15 सीटें जीतीं। दूसरी ओर पीडीपी ने 28 सीटें जीतीं और विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई। इसके अलावा भाजपा ने 25 सीटें जीतीं। उमर अब्दुल्ला ने 24 दिसंबर 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
10 साल बाद फिर लौटी नेशनल कॉन्फ्रेंस
हाल ही में जम्मू-कश्मीर की 90 सीटों के लिए हुए चुनावों में नेकां ने अकेले 42 सीटें जीतीं। 29 सीटों वाली भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। नेकां के साथ चुनाव लड़ी कांग्रेस के खाते में मात्र छह सीटें आईं। उमर अब्दुल्ला खुद दो सीट से चुनाव लड़े और जीते। पिछले चुनाव के बाद करीब तीन साल सरकार में रही पीडीपी महज तीन सीटें ही जीत पाई। इसके अलावा सात निर्दलीय और एक-एक सीट पीपल्स कॉन्फ्रेंस, माकपा और आप ने जीती।
सरकार बनाने के लिए 42 सीटें जीतने वाली नेकां को कांग्रेस का समर्थन है। वहीं एक-एक सीट के साथ आप और माकपा और पांच निर्दलीय चुने गए सदस्यों ने भी सरकार को समर्थन पत्र सौंपा है। इस तरह से सरकार के पास वर्तमान में 55 विधायकों का समर्थन है। 54 साल के उमर अब्दुल्ला को विधायक दल का नेता चुना गया है और उन्हें एक बार फिर जम्मू कश्मीर की सत्ता की कमान मिली है।
अब्दुल्ला परिवार
शेख अब्दुल्ला का निकाह बेगम अकबर जहां से हुआ था। शेख और बेगम अकबर के चार बच्चे हुए जिनमें फारुख अब्दुल्ला, सुरैया अब्दुल्ला अली, शेख मुस्तफा कमाल, खालिदा शाह शामिल हैं। फारुख अब्दुल्ला का निकाह मौली अब्दुल्ला से हुआ जबकि उनकी बहन सुरैया अब्दुल्ला अली का गुलाम मोहम्मद शाह से निकाह हुआ। गुलाम मोहम्मद शाह भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
फारुख और मौली के चार बच्चे हुए जिनमें उमर, साफिया, हिना और सारा शामिल हैं। मुख्यमंत्री रहे उमर की शादी पायल नाथ से हुई थी जो बाद में अलग हो गईं। उमर की बहन सारा की शादी राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से हुई जो बाद में अलग हो गए।