Swabhiman TV

Best News Online Channel

कावड़ ले जाने पर मिलता है अश्वमेघ यज्ञ का फल, कैसे ले जाते है कावड़, क्या है नियम जाने सबकुछ

कावड़ ले जाने पर मिलता है अश्वमेघ यज्ञ का फल, कैसे ले जाते है कावड़, क्या है नियम जाने सबकुछ

 

बरेली, 10 जुलाई। सावन माह में कावड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भोले के भक्त कांवर लेकर जाते हैं और फिर जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा भगवान शिव के प्रतीक कावड़ को यात्रा के दौरान प्राप्त करने का एक आध्यात्मिक और श्रद्धा-भक्ति पूर्ण आयोजन है। यह यात्रा मुख्य रूप से हिमालय की ओर जाकर गंगाजी के मंदिर में कावड़ चढ़ाने के लिए की जाती है।

कावड़ यात्रा के दौरान, श्रद्धालु ब्रह्मचारी अथवा संन्यासी बनकर रहते हैं और शिव भक्ति के लिए समर्पित तपस्या, व्रत, और पूजा-अर्चना करते हैं।

कावड़ यात्रा में यात्रियों का उद्देश्य न केवल भगवान शिव की आराधना करना होता है, बल्कि इसे आत्मविश्वास, संयम, समर्पण, और संगठन का प्रतीक भी माना जाता है। यात्रियों को यात्रा के दौरान अनुशासन में रहना और विभिन्न तपस्याओं का पालन करना पड़ता है, जो उनकी आध्यात्मिक उन्नति और अंतरंग शुद्धि में सहायता करते हैं।

यात्रा के दौरान यात्रियों के मन, शरीर और आत्मा की पवित्रता और शुद्धि को साक्षात्कार किया जाता है। इसके अलावा, यात्रा सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को प्रोत्साहित करती है और भक्ति और सेवा के माध्यम से संघटित होने का अवसर प्रदान करती है। यह यात्रा धार्मिक महाकुम्भ के रूप में भी मानी जाती है, जहां लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और अपनी भक्ति और आदर्शों का प्रदर्शन करते हैं।

सार्वजनिक रूप से, कावड़ यात्रा एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन है जो हिंदू समुदाय में भक्ति, श्रद्धा, और सेवा को संवार्धित करता है। यह यात्रा भक्ति, आध्यात्मिकता, और सामाजिक समरसता के प्रतीक के रूप में मानी जाती है और श्रद्धालुओं को अपने आप को शिव के ध्यान में लाने और उनके निकटता और कृपा को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।

सबसे पहले कावड़ लेकर कौन आया था

संस्कृति और पौराणिक कथाओं के अनुसार, कावड़ लेकर पहले भोलेनाथ (भगवान शिव) आए थे। इस प्रमाण के अनुसार, जब समुद्र मंथन के दौरान अमृत (अमृत वटी) निकली थी, तो भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था और अमृत को देवताओं को बांटने के लिए लेकर चले गए। देवताओं और असुरों के बीच हुए युद्ध में, जब असुरों ने अमृत के लिए कावड़ों को सहायता के लिए उठाने का प्रस्ताव रखा, तो भगवान शिव ने कावड़ों को उठाकर अमृत वटी को अपने देवता भक्तों को देने के लिए आये। इस प्रकार, भगवान शिव के द्वारा कावड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।

वैदिक ग्रंथों में भी कावड़ यात्रा के विषय में उल्लेख है, जहां यह उल्लेख किया जाता है कि महर्षि कश्यप ने पहले कावड़ों को समर्पित यात्रा की थी। इस प्रकार, कावड़ यात्रा का प्रारंभ वैदिक काल से ही हुआ था और इसे आध्यात्मिक और धार्मिक आयोजन के रूप में मान्यता प्राप्त है।

कावड़ यात्रा के दौरान इन नियमों का करे पालन

संकल्प और निश्चय: कावड़ यात्रा से पहले, कावड़िए को संकल्प (संकल्पना) करनी चाहिए कि वे शिव भक्ति के लिए यात्रा कर रहे हैं और उसे पूरा करेंगे।

ब्रह्मचर्य: कावड़ यात्रा के दौरान, कावड़िए को ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य व्रत) का पालन करना चाहिए, जिसका अर्थ होता है कि वे आहार, व्यवहार और मानसिक नियमों का पालन करें और सेक्सुअल अभिप्रेति से दूर रहें।

शुद्धता: कावड़िए को शुद्धता की दृष्टि से रहना चाहिए। इसके लिए वे निर्मल और स्वच्छ वस्त्र पहनेंगे, स्नान करेंगे और आत्म-शुद्धि के लिए पूजा और मन्त्रजाप करेंगे।

व्रत और उपासना: कावड़ यात्रा के दौरान, कावड़ियों को व्रत (उपवास) रखना चाहिए। यह व्रत भगवान शिव की पूजा-अर्चना, मन्त्रजाप और उपासना के साथ जुड़ा होता है। कावड़िए अक्सर फल और दूध का सेवन करते हैं और तपस्या के दौरान मन को नियंत्रित करते हैं।

संयम: कावड़ यात्रा के दौरान, कावड़ियों को अपने मन, वाणी और शरीर को संयमित रखना चाहिए। अपराधों से बचने, त्रासदी नहीं करने और सभी लोगों के प्रति सम्मान और सहयोग का आदर्श बनाने का प्रयास करें।

आस्था और भक्ति: कावड़ियों को पूर्ण आस्था और भक्ति के साथ यात्रा करनी चाहिए। शिव के नाम का जाप करें, भजन गाएं और भक्ति और समर्पण के साथ शिव को पूजें।

कावड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है?

सामान्य कांवड़: सामान्य कांवड़ में शिव भक्त आराम कर सकते हैं। कांवड़ियों के लिए ज्यादातर जगहों पर पंडाल लगे होते हैं, वहां अपनी कांवड़ रखकर आराम कर सकते हैं।

डाक कांवड़: डाक कांवड़ यात्रा के दौरान डाक कांवड़िए बिना रुके लगातार चलते रहते हैं। जहां से गंगाजल भरा हो और जहां जलाभिषेक करना हो, वहां तक उनको लगातार चलते रहना होता है। मंदिरों में डाक कांवड़ियों को लेकर अलग से इतजाम भी किए जाते हैं, ताकि जब कोई डाक कांवड़िया आए तब वह बिना रुके शिवलिंग तक पहुंच सकें।

खड़ी कांवड़: खड़ी कांवड़ के दौरान कांवड़िए की मदद के लिए कोई ना कोई होता है। जब वह आराम करते हैं, तब उनका सहयोगी अपने कंधों पर कांवड़ को लेकर चलते हैं और कांवड़ को चलाने की अंदाज में हिलाते रहते हैं।

दांडी कांवड़: दांडी कांवड़ सबसे मुश्किल होती है और इस यात्रा को करने में कम से कम एक महीने का समय लगता है। दांडी कांवड़ के कांवड़िए गंगातट से लेकर शिवधाम तक दंडौती देते हुए परिक्रमा करते हैं। यह लेट लेटकर यात्रा को पूरा करते हैं।

माता कावड़ यात्रा: इसमें भक्त अपने कंधों पर डोली लेकर माता के मंदिरों की यात्रा करते हैं। इस प्रकार की यात्रा में भक्त अपने चरणों में गंगा जल और पूजा सामग्री लेकर चलते हैं।

बाबा कावड़ यात्रा: इसमें भक्त शिव के मंदिरों की यात्रा करते हैं और अपने कंधे पर बाबा के प्रतीक कावड़ (जल-filled पोटली) लेकर आते हैं। ये कावड़ बाबा के प्रतीक और आदर्शता को दर्शाने के लिए यात्रियों द्वारा लिए जाते हैं।

नाग कावड़ यात्रा: इस यात्रा में भक्त नाग देवता की पूजा और आराधना करते हैं। ये कावड़ नाग देवता की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक होते हैं।

शाखा यात्रा: इसमें भक्त अपने स्थानीय मंदिरों की यात्रा करते हैं, जहां भगवान शिव की पूजा की जाती है। इसमें भक्त अक्सर बाम बांध यानी दाहिने कंधे से श्रावण मास की पूर्णिमा तक जल-धारा लेकर यात्रा करते हैं।