केंद्र सरकार ने आपराधिक कानूनों में बदलाव लाने वाले तीन बिल शुक्रवार को लोकसभा में पेश किए, लेकिन मैरिटल रेप का जिक्र नहीं हुआ| आईपीसी की धारा 375 के exception clause 2 के अनुसार मैरिटल रेप अपराध नहीं है| कानूनन विवाहित यानि कि पति-पत्नी के बीच यौन संबंध को बलात्कार की परिभाषा से बाहर रखा गया है|

केंद्र सरकार की ओर से शुक्रवार को लोकसभा में तीन नए बिल पेश किए| इसमें भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य बिल 2023 शामिल हैं| ये तीनों बिल भारतीय न्याय व्यवस्था में बड़े सुधार की नींव रखने के तौर पर पेश किए गए| बीते 70 सालों में इंडियन पीनल कोड 1860 (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर 1898 (CrPC) और एविडेंस एक्ट में बदलाव करना किसी सरकार द्वारा क्रिमिनल लॉ में किए जा रहे सबसे बदलावों में शुमार होने वाला है |

‘रेप में हो सकती है मौत तक की सजा’

इन बिलों में सबसे जरूरी बात जो कि ध्यान खींचती है, वह है महिलाओं-बच्चियों के खिलाफ होने वाले अपराधों में, दोषियों के प्रति सख्ती बढ़ाई जाने का प्रस्ताव रखा गया है| मसलन रेप के लिए न्यूनतम सजा सात साल से बढ़ाकर दस साल कर दी गई है, जबकि नाबालिगों के खिलाफ रेप के लिए अलग कानून बनाए गए हैं|इसके तहत 16 साल से कम उम्र की नाबालिग के साथ रेप पर अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी, जबकि 12 साल से कम उम्र की नाबालिग के साथ बलात्कार हुआ तो मौत की सजा हो सकती है| खास बात यह है कि नाबालिग से गैंगरेप के मामले में भी मौत की सजा दी जा सकती है| इसके साथ ही यौन उत्पीड़न के पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा के लिए भी नया कानून लाया गया है| इसके अलावा कानून ने पहली बार किसी महिला को धोखा देकर उसके साथ यौन संबंध बनाने को भी अपराध करार दिया है|

…लेकिन बाकी रह गई मैरिटल रेप की बात
इन सबके बावजूद और और कई आमूल-चूल बदलावों के बाद भी, जो एक बात बाकी रह जाती है, वह है मैरिटल रेप| नए कानूनों के तहत भी विवाह संस्था में होने वाले रेप एक अपवाद बने हुए है| इनमें धारा 63 के अपवाद 2 में कहा गया है कि “किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही पत्नी, जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम नहीं हो,उसके साथ यौन संबंध या यौन कृत्य रेप नहीं है|

कई वर्षों से चर्चा में है मुद्दा
दरअसल, मैरिटल रेप का मुद्दा कई वर्षों से भारतीय न्यायिक परिचर्चा में एक विवादास्पद विषय रहा है| आज के दौर में कई जगह ऐसे हालात हैं कि जब एक पति अपनी की सहमति के बिना उसका यौन उत्पीड़न करता है| इसे मैरिटल रेप माने जाने की जद्दोजहद जारी है, लेकिन आईपीसी की धारा 375 के exception clause 2 के अनुसार यह अपराध नहीं है| कानूनन विवाहित यानि कि पति-पत्नी के बीच यौन संबंध को बलात्कार की परिभाषा से बाहर रखा गया है|

मैरिटल रेप के मुद्दे ने छेड़ दी है बहस

इस अपवाद भरे विषय ने सुप्रीम कोर्ट और विधायिका लेकर समाज के हर तबके के बीच एक जरूरी बहस भी छेड़ दी है| समर्थकों का तर्क है कि यह खंड विवाह जैसी पवित्र संस्था की रक्षा करता है| उनका मानना ​​है कि मैरिटल रेप कानून लाने से इस संस्था को नुकसान हो सकता है| इससे झूठे आरोपों को बढ़ावा मिलेगा और संभावित रूप से परिवार नष्ट हो जाएंगे| हालांकि, वे यह स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि इस कानूनी अपवाद की वजह से कितनी ही महिलाओं के खिलाफ इस तरह की हिंसाओं के खतरे की दर तेजी से बढ़ रही है|

मैरिटल रेप को न मानना, महिला अधिकारों का उल्लंघन 

वहीं, दूसरी ओर कई सामाजिक कार्यकर्ता और कानून के जानकार, मैरिटल रेप को न माने जाने को लेकर इस महिलाओं के अधिकारों का घोर उल्लंघन कहते है. उनका तर्क है कि यह भारत के संविधान द्वारा नागरिकों को दी गई स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के मौलिक अधिकारों का खंडन है. उनका तर्क है कि मैरिटल रेप के मान्य कानूनों ने पश्चिमी समाज में सकारात्मक बदलाव लाए हैं और भारत को भी अपनी महिलाओं को घरेलू हिंसा और यौन शोषण से बचाने के लिए सुधार की आवश्यकता है. इसके अलावा, उनका तर्क है कि exception clause पुरुषों के प्रभुत्व और उनकी क्रूरता को प्रोत्साहित करता है