स्वाभिमान टीवी, बरेली। त्रिवटीनाथ मंदिर में होने वाली सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ मंगल कलश यात्रा के साथ हुआ। जिसमें अनेक महिलाओं और पुरुषों ने पीले वस्त्र पहनकर भाग लिया। कलश यात्रा बैंड बाजा के साथ निकाली गई। जिसमें ठाकुर जी का दिव्य सिंहासन भी सजाया गया। मंगल यात्रा में रथ पर सवार होकर कथा व्यास महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि भी साथ मे चले। पूरे रास्ते यात्रा पर नगर वासियों ने पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। कलश यात्रा धार्मिक स्थल से आस पास के पूरे एरिया में होते हुए वापस कथा स्थल तक पहुंची। यात्रा में वाराणसी से आये डमरू वादन ने सभी को अपनी ओर आकर्षित किया। कलश यात्रा के माध्यम से सभी से श्रीमद्भागवत कथा सुनने पहुंचने का भी आह्वान किया गया।
आज श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर श्री राकेश जैन अखिल भारतीय पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के सह संयोजक है। श्री पदम जी, हरिद्वार से बरेली पधारे, जो की पश्चिम यूपी के प्रचार प्रमुख है। मंच पर आकर गुरु जी का अभिनंदन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। और भागवत के अमूल्य महत्व को बताया।
उन्होंने कहा संघ को 99 वर्ष पूरे हुए अब 100 वे वर्ष मे प्रवेश कर गया। दुनिया को परिवार बनाने का कार्य किया। देश पर चिंतन करना है। भाषा पर चिंतन करना, हमारी मात्र भाषा का उपयोग जरूरी है इसके साथ भजन और भोजन । हमारे घर के अंदर सात्विक भोजन है। भवन ओर भ्रमण .. भवन हमारा ऐसा हो जहा सुख व शांति हो और अपने बच्चो के साथ तीर्थ पर जरूर जाए। अपने अपने जन्म दिन पर वृक्ष जरूर लगाए पर्यावरण बचाये।
मंच पर मुख्य यजमान पप्पू भर्तोल, संयोजक डॉ अनिल शर्मा, विष्णु अगरवाल, राकेश जैन, पदम भैया, पुनीत अगरवाल जी, सुनील यादव जी ने गुरु जी के अभिनंदन किया व व्यास पीठ की आराधना कर भागवत की शुरुआत की।
हरिद्वार श्री दक्षिण मुखी काली सिद्ध पीठ से आये मुख्य मंच संचालक आचार्य पवन दत्त ने सभी श्रोताओं का स्वागत अभिनंदन किया और सबको भागवत के प्रभुत्व से बांध दिया।
गुरुजी ने कहा श्रीमद भागवाद स्वयं श्री कृष्ण है। उद्धव जी जैसे परम ज्ञानी इस वृन्दावन मे रहना चाहते है वही खोना चाहते है। उसी प्रकार तिब्रीनाथ मन्दिर आज वृंदावन है। हम सभी मिलकर इस वृंदावन मे खो जाए। गुरु जी ने कहा आपके पता लगेगा की श्रीमदभागवत का दशम स्कंद भगवान् कृष्ण का हृदय है ।
भागवत के तीन महत्त्व पूर्ण श्रोता आज कथा की नींव है। सरोता नही बनना है कमियाँ नही देखनी है अयोजको की गलतिया नही ढूंढनी है, मन से हृदय से कथा सुननी है देखो नींद ना आये अच्छा श्रोता बनना है l
गुरु जी ने कहा भागवत शब्द चार अक्षरों से मिलकर बना है – भा, ग, व, और त. इन चारों अक्षरों का अर्थ इस प्रकार है: भ का अर्थ है भक्ति, ग का अर्थ है ज्ञान, व का अर्थ है वैराग्य, त का अर्थ है परम तत्व की प्राप्ति.।
गुरुजी ने कहा भागवत का अर्थ है, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य को बढ़ाकर परम तत्व की प्राप्ति करना. भागवत कथा सुनने से मानव में भगवान के प्रति भक्ति का भाव पैदा होता है. इसके बाद ज्ञान की प्राप्ति होती है और अंत में वैराग्य और समर्पण की भावना आती है.
श्रीमदभागवत को जो पड़ेगा उसका ज्ञान बड़ेगा, जो डुबकी लगायेगा वो वेराग्य की और जायेगा। जो डूब जायेगा वो त्याग की तरफ जायेगा।
गुरु जी कहते है एक बार कृष्ण ने अर्जुन ने कहा मेरा मन नही लगता, श्री कृष्णा ने कहा की मन कहाँ जाता है l काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह… स्त्री, वैभव, लोभ आदि मे मेरा मन भटक जाता है। श्री कृष्ण कहते है मै सभी प्राणियों मे विधमान हु पर इन पांच असक्तियो मे नही हू l
आप श्रोता है मै वक्ता हु कथा कर रहा हु बीच मे भगवान् है आपके और मेरे बीच मे गोता लगते है । पर आसक्ति से परे है। आप भी आसक्ति छोड़ कर भक्ति भाव से कथा श्रवण करो।