स्वाभिमान टीवी, डेस्क। असॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और उनके सहयोगियों को हिरासत से रिहा कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में सभाओं और विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने संबंधी दिल्ली पुलिस के आदेश को भी वापस ले लिया गया है। मेहता ने मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष यह बयान दिया। पीठ वांगचुक की रिहाई के अनुरोध और निषेधाज्ञा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
बता दें, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया, जिसमें लद्दाख को बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इससे वहां का विशेष दर्जा खत्म हो गया। छठी अनुसूची के अलावा पूर्ण राज्य की मांग के साथ केंद्र शासित प्रदेश के निर्माण ने उन्हें विधायिका के बिना ही छोड़ दिया, जिससे वे स्वायत्तता से वंचित हो गए। शासन में सरकारी नौकरियों और भूमि अधिकारों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व की मांग और लद्दाख में एक और संसदीय सीट को बढ़ाना आंदोलनकारियों के मांग में शामिल है। इसको लेकर लद्दाख के लोग 2019 से ही प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसका नेतृत्व सोनम वांगचुक कर रहे हैं। इससे पहले भी वांगचुक मार्च में 21 दिन तक भूख हड़ताल कर चुके है।
जानकारी हो कि बीजेपी ने साल 2019 के अपने चुनावी घोषणापत्र में और बीते वर्ष लद्दाख हिल काउंसिल चुनाव के में भी लद्दाख को राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था लेकिन इसे पूरा नहीं कर पाई, इसको लेकर भी लोगों में नाराजगी है। इस आंदोलन को लेकर सोनम वांगचुक की केंद्र सरकार से बातचीत भी चल रही थी लेकिन वह विफल हो गई थी। 26 अगस्त को केंद्र सरकार ने घोषणा किया था कि लद्दाख में 5 नए जिले बनाए जा रहे हैं। लेह और कारगिल के अलावा पांच नए जिलों का नाम ज़ांस्कर, द्रास, शाम, नुब्रा और चांगथांग होगें। वहीं सरकार के इस फैसले के पीछे इस आंदोलन को ही कारण माना गया था।
वांगचुक समेत लद्दाख के लगभग 120 लोगों को लद्दाख के लिए छठी अनुसूची का दर्जा देने की मांग को लेकर राजधानी की ओर मार्च करते समय पुलिस ने दिल्ली सीमा पर कथित तौर पर हिरासत में ले लिया था। छठी अनुसूची ‘‘स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों’’ के रूप में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
मेहता ने कहा कि वांगचुक और उनके सहयोगियों को रिहा कर दिया गया है और जब तक वे किसी कानूनी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करते हैं तब तक उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुनवाई के लिए एक अलग याचिका का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे लोग हैं जो अभी पाबंदियों के तहत हैं और उनकी आवाजाही स्वतंत्र नहीं है।