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कला को पहचान दिलाने का काम कर रहा है एसआरएमएस रिद्धिमा: अंतर्राष्ट्रीय शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी

कला को पहचान दिलाने का काम कर रहा है एसआरएमएस रिद्धिमा: अंतर्राष्ट्रीय शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी

– मुहब्बत नासमझ होती है समझना जरूरी है….
-शायर वसीम बरेलवी के साथ श्रोताओं ने वर्ष की पहली महफिल ए गजल में की शिरकत
-शायर वसीम बरेलवी की उपस्थिति में रिद्धिमा के गायकों ने उन्हीं को नज्र की उन्हीं की गजलें

बरेली, 07 जनवरी 24। कविता और गजल के कद्रदानों को वर्ष 2024 के पहले रविवार की शाम ख्यातिलब्ध शायर वसीम बरेलवी के साथ गुजारने, उनके नगमों को सुन कर बिताने का मौका मिला। एक शाम प्रोफेसर वसीम बरेलवी के साथ का यह मौका एसआरएमएस रिद्धिमा के सौजन्य से उपलब्ध हुआ। इस मौके पर श्रोताओं के साथ नामचीन शायर ने अपनी ही गजलों को सुनने और गुनगुनाने का लुत्फ उठाया। कार्यक्रम के आरंभ में एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक और चेयरमैन देवमूर्ति ने वसीम बरेलवी का स्वागत किया।

अपने संबोधन में प्रोफेसर वसीम बरेलवी ने अपने 62 वर्ष के मंच के साथ का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 6 फरवरी 1962 का दिन उन्हें आज भी याद है जब बरेली में उनकी गजलों को गाने के लिए मुंबई से महेंद्र कपूर विशेष रुप से बरेली पहुंचे थे। तब से आज तक तमाम महफिलें सज चुकी हैं। अपने लोगों के बीच होने से आज की महफिल और भी खास है। रिद्धिमा में इसका होना और भी खास बना रहा है। उन्होंने कहा कि फाइनल आर्ट्स की सारी विधाओं के इंस्टीट्यूट देश भर में हैं। लेकिन इसकी सबसे बड़ी विधा गायन को सिखाने का काम जो रिद्धिमा में हो रहा है और कहीं नहीं। इसका पूरा श्रेय देव मूर्ति को जाता है। जिन्होंने इसकी स्थापना कर इसके संरक्षण का प्रयास किया है।
कार्यक्रम का आगाज अतिथि गायक के रूप में डा.रीता शर्मा ने गजल शब ए मैखाना ये जो दिल पे गरा गुजरेगी को अपनी आवाज देकर की। एसआरएमएस की शैक्षणिक संस्थाओं के प्लेसमेंट सेल के निदेशक डा.अनुज कुमार ने गायन के विद्यार्थी के रूप में वसीम बरेलवी की गजल मैं इन उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा को अपने स्वर दिए। गायन की विद्यार्थी डा.रजनी अग्रवाल को गायन गुरु स्नेह आशीष दुबे का साथ मिला। दोनों ने जरा सा कतरा कहीं आज अगर उमरता है को अपने अंदाज में पेश किया और श्रोताओं की वाहवाही हासिल की। गायन के विद्यार्थियों डा.रजनी, डा.अनुज,पंखुड़ी गुप्ता, शालिनी पांडेय और सताक्षी अग्रवाल ने अपने साये को इतना ना समझाने, मैं आसमा पे बहुत देर, दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है को प्रस्तुत किया। अतिथि गायक के रूप में इंदू परडल और रोनी फिलिप्स ने मोहब्बत ना समझ होती है समझाना जरूरी है को प्रस्तुत कर युवा दिलों को प्यार का अहसास कराया। गायन गुरु प्रियंका ग्वाल और गायन गुरु स्नेह आशीष दुबे ने क्रमशः हज़ारो काटो से दामन और ज़िन्दगी तूझ पे अब इल्जाम को अलग अलग अपनी आवाज दी। साथ ही दोनों ने भला गमों से कहा हार जाने वाले थे को एक साथ मंच पर प्रस्तुत कर महफिल को ऊंचाई पर ले गए। अंतिम प्रस्तुति के रूप में इंदू परडल और डा. रीता शर्मा ने अपने हर लफ्ज़ का खुद अयना हो जाऊं को इंस्ट्रूमेंटल गुरु हिमांश चंद्रा के साथ अपनी आवाज देकर तालियां बटोरीं। कार्यक्रम में वादन गुरु उमेश मिश्रा (सारंगी), कुंवर पाल (सितार), सूर्यकांत चौधरी (वायलिन), टुकुमनी सेन (हारमोनियम), सोनू पांडेय (बांसुरी), आशीष सिंह (कीबोर्ड), अमरनाथ और सुमन बिस्वास (तबला, एग शेकर्स और चिमस) ने भी अपने अपने वाद्ययंत्रों के साथ गायकों का बखूभी साथ निभाया। इस मौके पर एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देव मूर्ति, आशा मूर्ति, ऋचा मूर्ति, डा. अशोक अग्रवाल, इंद्रदेव त्रिवेदी, अवनीश यादव, सुरेश ठाकुर, रंजीत वालिया, गुरु मेहरोत्रा, सुरेश सुंदरानी, सुभाष मेहरा, डा. प्रमेंद्र महेश्वरी, डा.एमएस बुटोला, डा. आरपी सिंह, डा. प्रभाकर गुप्ता, डा. अनुराग मोहन, डा. आलोक खरे सहित शहर के गणमान्य लोग मौजूद रहे।