बरेली के लगातार चार टर्म नगर निगम के चेयरमैन और विधान परिषद के सदस्य रहे लक्ष्मण दयाल शिंघल के परिवार की पूरी कहानी
गुज़िश्ता बरेली : डॉ राजेश शर्मा
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लक्ष्मण दयाल शिंघल बरेली के एक साधारण परिवार में जन्मे लेकिन अपनी प्रतिभा से बरेली के छितिज पर उदित हुए और अपनी आभा से राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक क्षेत्रों को आलोकित किया।
बरेली के आलमगीरी गंज मोहल्ले में राम भरोसे लाल रहा करते थे। सर्राफे का कारोबार था उनका और छोटी-मोटी जमींदारी भी थी। राम भरोसे लाल का विवाह जानकी देवी से होता है। इन के चार पुत्र होते हैं। रामेश्वर दयाल, लक्ष्मण दयाल, शंकर दयाल और मधुसूदन दयाल। परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। मां ज्वाला देवी परिवार की ईष्ट देवी हैं। घर के मंदिर में मां दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा भी परिवार ने की है। घर में अनुष्ठान और परोपकार का माहौल बना रहता है। आलमगीरी गंज की ही सर्राफा की दुकान पर बड़े पुत्र रामेश्वर दयाल पिता का हाथ कारोबार में बाँटाते थे।
1920 में जन्मे राम भरोसे लाल के दूसरे पुत्र लक्ष्मण दयाल ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन बहुत सुदर्शन व्यक्तित्व के मालिक थे। लंबे ऊंचे गौर वर्ण खूबसूरत। जवान हो गए थे लेकिन अभी किसी व्यवसाय में नहीं गए थे। बरेली में ही एक बहुत धनाढ्य व्यक्ति रहे साहू रामनारायण। जिन्हें लोग बियाबानी कोठी के मालिकान के रूप में भी जानते हैं। इनकी तीन पुत्रियां थीं। प्रेम कुमारी, श्याम कुमारी, और राजकुमारी।दो पुत्र मनोहर मुरली और श्याम मनोहर भी रहे हैं। प्रेम कुमारी अपनी शादी के एक साल के भीतर ही दुर्भाग्य से वैधव्य का शिकार हो गयीं।तीसरी पुत्री का विवाह हिंदुस्तान के बहुत धनाढ्य घराने में हुआ जिनके आज पूरे भारत में बड़े मॉल्स हैं। दूसरी पुत्री श्यामा कुमारी जन्म से ही पोलियो की शिकार थीं। उनका एक पाँव सेहत से लाचार था। साहू रामनारायण को अपनी दूसरी बेटी की चिंता दिन-रात खाती थी। अचानक से साहू साहब की नजर सुदर्शन व्यक्तित्व वाले लक्ष्मण दयाल शिंघल पर पड़ी। उन्हें यह अपनी बेटी के लिए उपयुक्त लगे। घर में बचपन से धार्मिक और परोपकार के माहौल को देखते हुए लक्ष्मण दयाल भी परोपकारी व्यक्तित्व के धनी थे।सो साहू साहब ने जब अपनी पुत्री के साथ विवाह का प्रस्ताव उनके समक्ष रखा तो उन्होंने उनकी परेशानी को देखते हुए इसे स्वीकार कर लिया और श्याम कुमारी का विवाह उनसे हो जाता है।
साहू रामनारायण पैसे और कारोबार में बड़े आदमी थे। अपनी बेटी की विकलांगता को देखते हुए उन्होंने अपनी पुत्री को बरेली शहर के बीचोबीच एक बहुत बड़ा भूभाग उपहार में दिया। यह भूभाग आज बरेली में नॉवेल्टी सिनेमा और उसके पीछे रोडवेज के सामने तक की जो दुकानें है वह हिस्सा है।बेटी को नगद पैसा और सोना गहना जो दिया होगा वह अलग। इस बड़े भूभाग पर बाद में एक शानदार कोठी का निर्माण हुआ और लक्ष्मण दयाल अपनी पत्नी समेत इस कोठी में रहने के लिए आए। राम भरोसे लाल और जानकी देवी आलमगिरीगंज के उसी मकान में रहे। 54 वर्ष की आयु में राम भरोसे लाल ने सन्यास ले लिया। इनकी पत्नी जानकी देवी भी वृंदावन में जाकर रहने लगीं। आलमगीरी गंज वाले मकान में ही लक्ष्मण लाल शिंघल के दो पुत्र होते हैं बड़े अरुण कुमार शिंघल और छोटे पुत्र विनय कुमार शिंघल। इन दोनों का पालन पोषण भी उसी धार्मिक माहौल में होने लगता है।
लक्ष्मण दयाल चूँकि एक बड़े घर के दामाद होते हैं सो ससुराल उन्हें कारोबार में भी सपोर्ट करता है।साहू परिवार की कई शुगर मिल होती हैं तो बरेली की एच आर शुगर फैक्ट्री और धामपुर शुगर फैक्ट्री की चीनी की सेलिंग एजेंसी का काम लक्ष्मण दयाल को मिल जाता है। चीनी की मांग पूरे इलाके में बहुत होती है।लक्ष्मण दयाल अब बहुत जल्द पैसे वाले बन जाते हैं। लक्ष्मण दयाल शिंघल जितने खूबसूरत व्यक्ति थे उतने ही असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी भी थे। दबंग, रोबीले, जुबान के पक्के,गुस्सैल,खरा खरा कहने वाले। उनके दोस्त उन्हें पठान कहते थे।कि जो भी उनके मुंह से निकल गया वह किसी भी हालत में उसे पूरा करेंगे।बाद में तो लक्ष्मण दयाल एक योग्य प्रशासक और कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में भी नज़र आये।उनके इस व्यक्तित्व को देखते हुए बरेली की ही एक राजनीतिक शख्सियत जगदीश शरण अग्रवाल ने उन पर ध्यान देना शुरू किया और उन्हें प्रेरित किया कि वह म्युनिसिपल बोर्ड का इलेक्शन अपने क्षेत्र आलमगिरीगंज से लड़े। 35 वर्ष की आयु में लक्ष्मण दयाल इलेक्शन लड़ लिए और 1955 में इलेक्शन जीत भी गए। अब बारी आई जीते हुए मेम्बरों में से चेयरमैन चुनने की। सभी मेंबरों ने लक्ष्मण दयाल शिंघल को चेयरमैन भी चुन लिया।यहां से लक्ष्मण दयाल शिंघल का उत्साह और बढ़ा और वो बरेली की राजनीति करने लगे।जगदीश शरण अग्रवाल कांग्रेस के नेता थे। इसी बीच बिजनौर के एक राजनीतिक शख्स गोविंद सहाय के संपर्क में भी लक्ष्मण दयाल आये।गोविंद सहाय उत्तर प्रदेश की राजनीति के बड़े चेहरे थे।इस प्रकार गोविंद सहाय ने लक्ष्मण दयाल शिंघल को भी उत्तर प्रदेश की राजनीति में पेश किया। बरेली में कांग्रेस के दो गुटों उस समय हुआ करते थे।एक गुट में जगदीश शरण अग्रवाल, धर्मदत्त वैध दूसरे गुट में राममूर्ति जी,आंवले के नवल किशोर नवाबगंज विधायक और फरीदपुर के विधायक के साथ-साथ दरबारी लाल शर्मा और पी सी आजाद आदि थे। उत्तर प्रदेश की कांग्रेस की पॉलिटिक्स में मुख्यमंत्री सी वी गुप्ता यानी चंद्रभान गुप्ता का एक गुट था तो दूसरा गुट कमलापति त्रिपाठी का था।दोनों ही कॉंग्रेस में थे।बाद में जब कांग्रेस टूटी तो पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस बनी।पुरानी कांग्रेस में चंद्रभान गुप्ता,डी सी मिश्रा, मोरारजी देसाई वगैहरा रहे और नई कांग्रेस (कॉंग्रेस आई) में कमलापति त्रिपाठी व धर्मदत्त वैध रहे। 1971 से 1973 तक कमलापति त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। जब इंदिरा गांधी कांग्रेस का इलेक्शन जीत गई तब से यह लोग उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत चमके। कमलापति त्रिपाठी पहले से ही कॉंग्रेस के सीनियर मेंबर थे बाद में भी बाद में भी राज्यसभा, लोकसभा और रेलवे के केंद्रीय मंत्री भी रहे। लक्ष्मण दयाल शिंघल की कमलापति त्रिपाठी से नज़दीकियों के कारण यह भी उत्तर प्रदेश सहित बरेली में खूब चमके। बाद में हेमवती नंदन बहुगुणा से भी लक्ष्मण दयाल शिंघल के अच्छे संबंध हो गए। जगदीश शरण अग्रवाल और गोविंद सहाय के साथ चलते-चलते और बरेली में अपनी पकड़ को बनाए रखते हुए लक्ष्मण दयाल शिंघल एक के बाद एक चार बार नगर पालिका के चेयरमैन रहे।15 वर्षों तक नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने बरेली शहर को सुंदर,सुरुचिपूर्ण और आधुनिक बनाने का प्रयास किया।इस दौरान वो रूहेलखंड के राजनैतिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक छितिज पर छाए रहे।। बाद में जनसंघ से बृजभूषण लाल को म्यूनिसपल के इलेक्शन में खड़ा किया गया। उनसे लक्ष्मण दयाल शिंघल हार गए। अब तक यह एक संपन्न व्यक्ति हो चुके थे और नॉवल्टी के पीछे वाले अपने नयी कोठी में परिवार सहित विराजमान थे। इसके बाद लक्ष्मण दयाल शिंघल ने मई 1974 को स्थानीय निकाय क्षेत्र से एमएलसी का चुनाव लड़ा और यह चुनाव भी जीत कर वह एमएलसी बन गए। जब वह नगर निगम बोर्ड के चेयरमैन थे तब बरेली के कुतुब खाना में जो लाइब्रेरी कुतुबखाना के नाम से थी उसको वहां तोड़ा गया। तब उस कुतुबखाने की सारी किताबें नॉवल्टी के सामने नगर पालिका की बनी हुई बिल्डिंग में शिफ्ट की गईं। उस लाइब्रेरी का नाम लक्ष्मण दयाल शिंघल लाइब्रेरी रखा गया।आज भी यह लाइब्रेरी प्रेस क्लब के पीछे स्थित है।शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने बड़ा योगदान किया।अनेक शिक्षण संस्थानों को उन्होंने सजाया संवारा।बरेली कॉलेज के बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के वह आजीवन सदस्य रहे।रूहेलखंड विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उनका अविस्मरणीय योगदान है।बरेली में दैनिक विश्व मानव अखबार की स्थापना भी लक्ष्मण दयाल शिंघल ने की थी।ऐलन क्लब के भव्य भवन भी उनकी स्मृति को आज भी दर्शाता है।।शिंघल साहब राजनीतिक होते हुए भी पूर्णतः जनसेवक थे।सब कुछ ठीक चल ही रहा था कि 29 अगस्त1976 में लक्ष्मण दयाल को अचानक हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्यु हो गई।श्याम कुमारी पहले से ही धार्मिक कारणों से वर्ष में कई बार वृंदावन जाती थीं लेकिन बाद में तो वह पूरी तरह से वृंदावन में ही रहने लगीं।लक्ष्मण दयाल शिंघल की मृत्यु पर नारायण दत्त तिवारी बरेली उनके निवास पर आए और उनके पुत्रों अरुण कुमार शिंघल और विनय कुमार शिंघल को उन्होंने उत्तर प्रदेश की राजनीति में आने के लिए आमंत्रित किया लेकिन इन दोनों ही लोगों की राजनीति में कोई रुचि ना थी और उस समय तक वे दोनों अपने कारोबार में लिप्त थे तो इस परिवार की राजनीति का अंत लक्ष्मण दयाल शिंघल के साथ ही हो गया।
बदायूं के पास एक गांव है वहां एक नदी बहती है। वह नदी बार-बार आसपास के इलाके को अपने में समा लेती थी तो एक बाबा हरि बाबा ने वहां रेतीली बालू से एक बांध बना दिया और भगवान का संकीर्तन शुरू कर दिया। वह जगह बांध धाम के नाम से मशहूर हो गई। हरि बाबा ने कहा यदि यहां 24 घंटे भगवान का संकीर्तन चलेगा तो नदी कभी इस बालू के बांध को नहीं तोड़ पाएगी।आश्चर्य यह है कि आज भी 24 घंटे इस बांध धाम पर ईश्वर का संकीर्तन होता है और रेत से बना बांध आज भी नदी के प्रवाह को रोके खड़ा है। श्याम कुमारी बाद में इन्हीं हरि बाबा के संपर्क में आयीं और वृंदावन में उन्हीं के आश्रम में रहने लगीं। वही एक दिल्ली के औद्योगिक घराने की स्त्री शांति देवी भी अपनी आध्यात्मिक ज्ञान के कारण अपनी बेटी उर्मिला के साथ रहती थीं और बेटी उर्मिला बृंदावन में ही पढ़ती थी। श्याम कुमारी को उर्मिला अपने छोटे बेटे विनय के लिए अच्छी लगी तो उन्होंने विनय कुमार शिंघल का विवाह उर्मिला से करा दिया।
लक्ष्मण सिंह के बड़े पुत्र अरुण कुमार सिंघल 12 वीं कक्षा करने के बाद इलाहाबाद से बीएससी करने गए। उन्हें वहां दाखिला न मिला तो बार-बार वह वाइस चांसलर के पास हाजिर होने लगे।दरअसल बाहर के लोगों को विश्वविद्यालय में दाखिला हॉस्टल में दाखिला मिलने के बाद होता था। अब रहने के लिए हॉस्टल चाहिए तो मेन्युर हॉस्टल जो अमरनाथ झा के नाम से भी मशहूर हुआ था और उस होस्टल के बारे में यह भी मशहूर हुआ था कि इस हॉस्टल के पढ़े लड़के आई ए एस और इंजीनियर बनते हैं। तब भी बियाबानी कोठी वाले सूरज अवतार ने ही उनको 1955 में इस हॉस्टल में जगह दिलवाई।सूरज अवतार पहले वहाँ रह कर पढ़ चुके थे।अरुण कुमार जर्मनी से इंजीनियरिंग करना चाहते थे तो बरेली के बरेली कॉलेज के महा विद्वान पंडित भोला नाथ शर्मा से उन्होंने जर्मन भाषा सीखी।पण्डित भोला नाथ शर्मा बरेली में रह कर उस समय मूल जर्मन,मूल ग्रीक और मूल रूसी के दर्शन शास्त्र संबंधी किलिष्ट ग्रंथों का अनुवाद हिंदी में कर रहे थे।अरुण कुमार शिंगल जर्मन सीखकर और फर्स्ट क्लास में बी एस सी कर के जर्मनी की बर्लिन यूनिवर्सिटी में चले गए। 1958 में जर्मनी जाकर सात साल पढ़ाई और नौकरी की। जर्मनी के आईबीएम वर्ल्ड ट्रेड में नौकरी की।अंग्रेजी, हिंदी और जर्मन भाषा पर पकड़ होने के कारण इनको सुगमता से इतनी बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। उसी दौरान एक जर्मन युवती से इनका इनका इश्क़ हुआ। यहां इनकी मां और पिता परेशान कि लड़का हाथ से गया।घर में विदेशी बहू न आ जाये इस बात से परेशान पिता ने भृगु सहिंता के ज्ञानी मेरठ के एक शास्त्री जी को इनका विवरण दिखाया तो उन्होंने आश्वस्त किया कि अरुण कुमार का विवाह उसी लड़की से होगा जो आपने बरेली में पसंद की है। तब इनके पिता ने अरुण को एक पत्र लिखा कि तुम उस जर्मन युवती से विवाह कर लो। अब जब अरुण ने गंभीर होकर उस युवती से विवाह की बात की तो उस ने भारत जाने से इंकार कर दिया और कहा कि हम दोनों यहीं जर्मनी में रहेंगें।परिवार के संस्कार थे अरुण अपने पिता की गरिमा और परिवार की आबरू को सबसे पहले मानते थे।उन्हें भारत में ही अपने परिवार के साथ रहना था सो वह भारत वापस आ गए और अपने परिवार द्वारा पसंद की गई आलमगीरीगंज की युवती अरुणिमा से 1965 में विवाह किया।अरुण इंजीनियर तो थे ही।उसी समय बरेली में औद्योगिक क्षेत्र का विकास हुआ शुरू हुआ ही था।परसाखेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में नाप जोख शुरू हुई थी कि परसाखेड़ा क्षेत्र में सबसे पहला औधोगिक प्लाट अरुण सिंघल और विनय सिंघल ने साझा लिया और उस पर 1971 में कृषि डिस्क प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की।बीस हजार गज के प्लाट पर इस फर्म ने सफलता के सोपान रखे। अरुण कुमार सिंघल और विनय कुमार शिंघल इस फर्म को चलाते रहे।
विनय कुमार शिंघल ने भी बरेली कॉलेज से बीएससी की।विनय टेनिस के अभूतपूर्व खिलाड़ी रहे हैं। बरेली के डिस्ट्रिक्ट चैंपियन भी रहे हैं। आगरा यूनिवर्सिटी के चौथे नंबर के शानदार खिलाड़ी रहे हैं। बरेली कॉलेज के भी टेनिस कैप्टन रहे। विनय का विवाह उर्मिला शिंघल हो गया था।जब मानस साधना मंडल से इनका संबंध हुआ तो उस मंडल में यह प्रमुखता के साथ काम करने लगे और 1990 में मानसस्थली विद्यालय की नींव से काम शुरू करवा कर पूरा विद्यालय बना देने का काम इन्होंने अपने हाथ में लिया और उसे पूरा कर दिया। विनय कुमार शिंघल सिविल डिफेंस के जमाने में पोस्टवार्डन भी रहे। बाद में इन्हें चीफ वार्डन सिविल डिफेंस बना दिया गया। प्राणनाथ कपूर उस समय वाइस प्रेसिडेंट थे।तीन साल तक विनय शिंघल चीफ वार्डन रहे। तत्कालीन गवर्नर ने इनकी सिविल डिफेंस की सेवाओं को देखते हुए इनको गवर्नर मैडल दिया। विनय कुमार शिंघल जैसीज जूनियर के भी प्रेसिडेंट रहे हैं। इनके एक पुत्र विकास शिंघल हैं जो आज भी कृषि डिस्क प्राइवेट लिमिटेड को संभाल रहे हैं।विकास शिंघल ने नैनीताल के सेंट जोसेफ़ से पढ़ाई की है। विकास शिंघल के ताऊ अरुण शिंघल और पिता विनय शिंघल ने अब रिटायरमेंट ले लिया है।विनय शिंघल के एक पुत्री वृंदा हैं।जिनका रुझान आध्यात्मिकता की तरह बहुत गहरा है।वृन्दा ज्वैलरी डिजायनर भी हैं। अरुण कुमार शिंघल ने कृषि डिस्क छोड़ने के बाद अपने मित्र और बरेली के बड़े व्यवसायी अरुण गुप्ता के लिए कमर्शियल नाइव्स की फैक्ट्री लगवाई।उससे कुछ समय जुड़े भी रहे लेकिन अब वह रिटायरमेंट की जिंदगी गुजार रहे हैं। लेकिन शेयर मार्केट में इनकी रूचि है।हफ्ते में दो दिन शेयर मार्केट में अपने दावँ लगा आते हैं। दुर्भाग्य से इनके पुत्र मुकुंद की 11 वर्ष की छोटी उम्र में ब्रेन हेमरेज से मृत्यु हो गई। इनकी पुत्री राधिका जो मुकुन्द से बड़ी है लखनऊ के एक जेम्स के बड़े व्यवसायिक घराने की बहू हैं। अरुण कुमार के श्वसुर कृष्ण कुमार हैं जिनका बरेली में बीबीएल स्कूल समूह है। अरुण कुमार शिंघल बी बी एल स्कूल समूह के चेयरमैन भी हैं।