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भगवान के चार भक्त है आर्त यानी दुखी, जिज्ञासु , धनवान, ज्ञानी: गुरु जी

स्वाभिमान टीवी, डेस्क। आज तृतीय दिवस श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ व्यास पीठ की पूजा व गुरु जी की पूजा अभिनंदन से शुरू हुआ। मंच पर आसीन सभी दिव्य संत गणों आत्मानंद गिरी, अनुरागी जी, गौतम गिरी जी, विवेकानंद जी व अन्य की उपस्थिति मे मंच संचालक श्री पवन दत्त जी ने सभी श्रोताओं का अभिवादन करते हुए कथा का शुभारंभ किया।

गुरुजी ने सभी का अभिनंदन व वंदन करते हुए सभी को अत्मविभोर कर दिया। श्रीमद भागवत को पीने वाले श्रीमद भागवत अमृत का रसास्वदं करने वाले अमृत गण निसंदेह भाग्य शाली है। कार्तिक मास मे भगवान् महादेव के सानिध्य मे होने वाली श्रीमद भागवत कथा अनमोल है। श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी… है नाथ नारायण वसुदेव… भजन के उन्मोद से कथा शुरू हुई।

गुरु जी कहते है सुखदेव जी भागवत करेंगे या नही व्यास जी के अंदर यह ब्यथा चल रही थी। आँखों मे आँसू वाले भक्त भगवान् को प्रिय है। बड़े बड़े साधु बहुत साधारण है कथा का सार है कि हम भक्ति की ओर जाए। श्रीमदभागवत यहाँ घर घर मे होती है। भगवान् श्री कृष्ण कहते है।भगवान् के चार भक्त है आत् यानी दुखी, जिज्ञासु , धनवान, ज्ञानी .. कृष्ण ने अर्जुन ने कहा भगवान् कौन आपके प्रिय है भगवान् ने कहा कि आत् और ज्ञानी मेरे प्रिय है।

महर्षि वेद व्यास जी का मन इतने पुरानो की रचना के बाद भी व्यथित था जब वेद व्यास जी ने भागवत को रचा, 18000 श्लोको को जन्म दिया, 12 स्कंद -335 अध्याय है। साधु सन्यासी भी कही न कही वसनाओ मे अटक जाते है। श्रीमद भागवत से सभी आसक्ति तत्व दूर होते है। एक छन भी कोई इसको देता है उसका उद्धार हुआ।

जनक के द्वारा वेद व्यास को दान मिला व्यास जी भागवत् की रचना के लिए तैयार हो गए, गुरु जी कहते है यह मानव शरीर दुर्लभ है बड़े जतन से प्राप्त होता है। राम चरित मानस की रचना मे जो बात कही गयी वही भागवत मे कही गयी। दोनों कितनी सुंदर है। काम को छोड़कर भोजन करो, 1 लाख काम को छोड़कर दान करो, 1 करोड़ काम को छोड़कर भगवान् का ध्यान करो जीवन सफल हो जायेगा।

नारद जी के चरित्र का किया वर्णन

गुरु जी ने नारद जी के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि नारद जी ने व्यास जी से कहा चतुर्मास् मे मेरी माता संयसियों को बचा हुआ भोजन करवाती थी। एक दिन अचानक ही मां का निधन हो गया। जब एक दिन मैं ताप पर बैठ गया मेरा मन मे दिव्य रोशनी हुई। उस रोशनी ने मुझे आलादित् कर दिया , वो छन मुझसे भूला नही जा रहा था मै तप करता रहा। एक समय ऐसा आया की हरि के निकट मुझे जाने का अवसर मिलने लगा। बालू को मथने से घी निकल सकता है। घास को मथने से तेल निकल सकता है लेकिन बिना हरि को भजे बिना परमात्मा को भजे कोई भवसागर से पार नही हो सकता है। वेद व्यास जी स्वयं विष्णु है स्वयं नारायण है जब नारायण किसी भक्त की प्रशंसा सुनते है। साधना के बारे मे जानते है।

गुरु जी कहते है माला फेरते फेरते हमारा प्राण चला जाता है। लेकिन ईश्वर की अनुभूति हमे नही हो पाती है ईश्वर कहते है माला मन से फेरो तन से नही, हाथों मे गाँठ पड़ जायेगी फिर भी ईश्वर की अनुभूति नही होगी पर यदि मन से माला फेरी जायेगी तो ईश्वर जरुर मिल जायेगा। महर्षि वेद व्यास जी स्वयं विष्णु है नारायण है अंतर्यामी है।
गुरु जी कहते है माला फेरते फेरते प्राण निकल जाते है लेकिन ईश्वर के दर्शन नही होते जब तक तन से नही माला मन से फेरो भगवान् के दर्शन होंगे।

भगवान् के अत्यंत् करीब के लिए कातर भाव से देवारिषी नारद ने प्रार्थना की भगवान् मै आपका सदेव शर्नागत रहूँगा। जब तक मनुष्य भगवान् से कहता है की मेरे पास इतना सब कुछ है तुझे चड़ाने के लिए देने के लिए तब तक भगवान् उसको स्वीकार नही करते। आज नारद जी देवारिषी के पद को पाने के लिए नही अपितु भगवान् के करीब रहने के लिए प्रार्थना की। तीन भक्ति है, सायुज्य, सामित्य, सालोक्य, इन तीनो मे से एक की प्राप्ति हो इसके लिए देवारिषी भगवान् के करीब हुए और भगवान् जब किसी को अपना लेते है तो भगवान् उसे धर्म अर्थ काम मोक्ष चारो प्रदान कर देते है।

भगवान् ने देवारिषी को चारो देकर ईश्वर के प्रचार प्रसार का कार्य भी दिया। सबको प्रेरणा दो सबके पास जाकर मेरा एहसास करवाओ। जिसको नारद मिल जाते है उसको स्वयं नारायण मिल जाते है। महर्षि वेद व्यास जी नारद जी का वृतांत सुनकर प्रसन्न हुए । गुरु जी कहते है, हम बार बार कहते तो है भगवान् हमारे है पर जब भगवान् कह देते है की तुम हमारे हो तो आपको फिर कभी नही कहना पड़ता की भगवान् हमारे हो।

महाभारत काल का किया वर्णन
गरु जी महाभारत काल की बात करते हुए कहते है, जब अश्वथामा ने द्रोपदी के पांचो पुत्रो को मार दिया , दुर्योधन को लगा की उसकी कुल परंपरा का नाश हो गया,द्रोपदी रुदन करने लगी, अर्जुन ने संलकप् किया की उसका वध करूँगा जिसने मेरे बच्चो को मारा है। भगवान् श्री कृष्ण नही चाहते थे की अर्जुन भृमहा हत्त्या करे। अर्जुन जब अश्वत्थामा को पकड़ कर ला रहा था तो उसने भ्रमास्त्र का प्रयोग किया।अश्वत्थामा को भ्रमस्त्र चलाना आता था पर वापस नही ला सकता था। इसी प्रकार हम मुह से निकले शब्द और तरकश से निकला बाॅण् कभी वापस नही आते। कोयल को कौन क्या देता है फिर भी कोमल वाणी सबको देती है। कभी बिना विचारे किसी को गलत नही बोलना चाहिए।

कृष्ण से अर्जुन से कहा की तुम अपना भ्रमअस्त्र चलायो और उसके भी अस्त्र को वापस ले आयो। जब अर्जुन अश्वत्थामा को द्रोपदी के सामने लाया तो द्रोपदी ने कहा द्रोणाचार्य के पुत्र को तीन बार कहा मत मारो , मत मारो, मत मारो वो आपके गुरु का पुत्र है। अर्जुन को लगा मैंने तो संकल्प लिया था तो कृष्ण कहते है की बड़े लोगो का वध नही किया जाता उनका अपमान ही वध के समान है। कृष्ण कहते है की अर्जुन इसका भ्रह्मतेज निकाल लो। भ्रम तेज आज्ञा चक्र है l अश्वत्थामा आज भी जंगलो जगह जगह भ्रमण करता है। गंधमादन पर्वत नेपाल मे आज भी हनुमान जी व अश्वत्थामा निवास करते है। भगवान् ने उत्तरा के गर्भ मे जाकर परीक्षित की रक्षा करने अंगूठे के समान रूप धारण कर गर्भ मे समा जाते है उधर अर्जुन भ्रम अस्त्र को वापस लेते है।

भगवान् कभी दुखी नही होते भगवान् तभी दुखी होते जब भक्त दुखी होता है। गुरु जी कहते है अभ्यास से कुंडलिनी जागृत नही होती जब तक गुरु कृपा या नारायण कृपा नही होती गुरु जी कहते है की ज्ञान कांड, भक्ति कांड, कर्म कांड और उपासना कांड चार कांड होते है। आज भी अष्ठवथामा आज भी हिन्दूस्तान मे भ्रमण करता है। नेपाल के पहाड़ पर आज भी हनुमान जी के साथ अश्वत्थमा विराजमान है।

कभी भी जीवन मे गलत शब्द न निकले
आज्ञा चक्र कर्म है आज्ञा चक्र का अर्थ महादेव, नाभि मे ब्रह्रा, सांस खीचते है ब्रह्रा, सांस को रोकते है विष्णु का ध्यान व सांस को बाहर निकलते वक़्त महादेव का ध्यान करना चाहिए। आज्ञा चक्र पर भगवान् शिव है गर्म रहता है इसीलिए माथे पर चंदन लगाते है l बिंदु ठीक रहे इसलिए छोटी रखो, अंता करण मे शीतलता आये इसलिए ठाकुर जी को भोग लगा कर भोजन करो। चख कर भोजन न बनाओ उस भोजन को ठाकुर जी स्वीकार नही करेंगे चखा हुआ भोजन से आपके अंदर अहंकार आयेगा।
भगवान् कहते है क्रोध न करो उससे मोह की उत्पति होगी । कथा से व्यथा मिटती है।

श्रीमद भागवत ग्रंथ नही है यह स्वयं बाल कृष्ण है। जो एक बार कथा मे आ गया उसका उद्धार हो गया। जिसने इस कथा का आनंद ले लिया उसको किसी चीज मे आनंद नही आ सकता। जो शाश्वत, मौलिक, पारंपरिक, वैचारिक, परस्परिक, बौद्धिक, सैद्धांतिक, धार्मिक लोग है उनका एक मात्र आश्रय श्रीमद् भागवत है। न अभद्र सुनेंगे न अभद्र देखेंगे भगवान् उसके पास उसके साथ होंगे।

गुरु जी कहते है की गंगा मे स्नान करने मात्र से मुक्ति मिलती है। श्रीमदभागवत का श्रवण करने से ज्ञान भक्ति वेराग्य मिलता है। राजा परीक्षित के चरित्र का वर्णन करते हुए गुरु जी ने सबको दिव्य ज्ञान से सराबोर किया। तत्पश्चात आरती के साथ सभी गणमान्य अतिथियों ने गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त किया जिसमे बरखेड़ा से पूर्व विधायक कृष्ण पाल राजपूत भी थे व समिति के सदस्यों, पुनीत अग्रवाल, डॉ अनिल शर्मा, सुनील यादव, पप्पू भरतौल, धीरज, राकेश आदि ने आशीर्वाद प्राप्त किया।