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भारत के बाहर ह‍िंदुओं का सबसे बड़ा मंद‍िर बनकर तैयार, 183 एकड़ में फैला, 10 हजार मूर्त‍ियां, जानें इस Temple की 10 खास बातें

world largest second hindu mandir: इस मंद‍िर के निर्माण वर्ष 2011 से शुरू हुआ था जो वर्ष 2023 में पूरा हुआ| इस मंद‍िर को बनने में 12 वर्षों का समय लगा| इस मंद‍िर केऔपचार‍िक उद्घाटन से पहले देशभर से हर दिन हजारों हिंदू और अन्य धर्मों के लोग यहां आते है| अक्षरधाम के रूप में लोकप्रिय इस मंदिर का माप 255 फीट x 345 फीट x 191 फीट है और यह 183 एकड़ में फैला हुआ है|

आधुनिक युग में भारत के बाहर निर्मित दुनिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिर का उद्घाटन 8 अक्टूबर को न्यू जर्सी में होने वाला है| न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर से लगभग 90 किमी दक्षिण में या वाशिंगटन डीसी से लगभग 289 किमी दूर उत्तर में, न्यू जर्सी के छोटे रॉबिन्सविले टाउनशिप में बीएपीएस स्वामीनारायण अक्षरधाम मंद‍िर को 12,500 से अधिक की वॉलंटियर्स द्वारा बनाया गया है|

10 बातों में जानें इस ह‍िन्‍दू मंद‍िर के बारे में सारी बातें

1.इस मंद‍िर को प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, डिजाइन किया गया है और इसमें 10,000 मूर्तियों और प्रतिमाओं, भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों और नृत्य रूपों की नक्काशी सहित प्राचीन भारतीय संस्कृति के डिजाइन शामिल है| यह मंदिर संभवतः कंबोडिया में अंगकोरवाट के बाद दूसरा सबसे बड़ा ह‍िंदू मंदिर है|

2.12वीं सदी का अंगकोर वाट मंदिर परिसर दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है| यह मंद‍िर 500 एकड़ में फैला हुआ है और अब यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है| नई दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर, जिसे नवंबर 2005 में जनता के लिए खोला गया था| 100 एकड़ में फैला हुआ है|

3.अक्षरधाम पारंपरिक हिंदू मंदिर वास्तुकला के साथ बनाया गया है| इस अद्वितीय हिंदू मंदिर के डिजाइन में एक मुख्य मंदिर, 12 उप-मंदिर, नौ शिखर (शिखर जैसी संरचनाएं), और नौ पिरामिड शिखर शामिल है| अक्षरधाम में पारंपरिक पत्थर वास्तुकला का अब तक का सबसे बड़ा अण्डाकार गुंबद है|
4.इस मंद‍िर को ऐसे ड‍िजाइन क‍िया गया है| क‍ि एक हजार साल तक इसे कुछ नहीं होने वाला है| अक्षरधाम के हर पत्थर की एक कहानी है| ज‍िन चार प्रकार के पत्‍थर को मंद‍िर बनाने के ल‍िए चुना गया है| उनमें चूना पत्थर, गुलाबी बलुआ पत्थर, संगमरमर और ग्रेनाइट शामिल है| जो अत्यधिक गर्मी और ठंड का सामना कर सकते है|
5.इस ह‍िंदू मंद‍िर के निर्माण में लगभग दो मिलियन क्यूबिक फीट पत्थर का उपयोग किया गया और इसे दुनिया भर के विभिन्न स्थलों से लाया गया| जिसमें बुल्गारिया और तुर्की से चूना पत्थर, ग्रीस, तुर्की और इटली से संगमरमर, भारत और चीन से ग्रेनाइट, भारत से बलुआ पत्थर और यूरोप, एशिया, लैटिन अमेरिका से अन्य सजावटी पत्थर मंगाया गया है|
6.इस मंद‍िर के ब्रह्मकुंड में एक पारंपरिक भारतीय बावड़ी है| जिसमें भारत की पवित्र नदियों और अमेरिका के सभी 50 राज्यों सहित दुनियाभर के 300 से अधिक जलाशयों का पानी शामिल है| बीएपीएस की सतत प्रथाओं में सौर पैनल फार्म, फ्लाई ऐश कंक्रीट मिश्रण और पिछले कुछ दशकों में दुनिया भर में दो मिलियन से अधिक पेड़ लगाना शामिल है|
7.पूरे अमेरिका से स्वयंसेवकों ने अक्षरधाम के निर्माण में मदद की है| उनका मार्गदर्शन भारत के कारीगर स्वयंसेवकों द्वारा किया गया था| अक्षरधाम के निर्माण के लिए लाखों स्वयंसेव‍ियों ने घंटे समर्पित किए गए है| पश्चिमी गोलार्ध में हिंदू संस्कृति और वास्तुकला का एक मील का पत्थर कहे जाने वाले अक्षरधाम का औपचारिक उद्घाटन 8 अक्टूबर को बीएपीएस आध्यात्मिक प्रमुख महंत स्वामी महाराज के मार्गदर्शन में किया जाएगा| यह 18 अक्टूबर से आगंतुकों के लिए खुला रहेगा|
8.बीएपीएस अधिकारियों ने कहा कि स्वयंसेवकों ने मंदिर को लाखों घंटे की निस्वार्थ सेवा समर्पित की है| इनमें 18 वर्ष से लेकर 60 वर्ष से अधिक उम्र के छात्र, कंपनियों के सीईओ, डॉक्टर, इंजीनियर और आर्किटेक्ट तक शामिल है| उनमें से कई ने महीनों तक काम से छुट्टी ले ली है और मंदिर निर्माण में स्वेच्छा से अपनी सेवाएं देने के लिए निर्माण स्थल के पास कमरे क‍िराए पर लिए|
9.बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के अक्षरवत्सलदास स्वामी ने पीटीआई को द‍िए इंटरव्‍यू में बताया है| क‍ि हमारे आध्यात्मिक नेता (प्रमुख स्वामी महाराज) का दृष्टिकोण था| कि पश्चिमी गोलार्ध में एक ऐसा स्थान होना चाहिए| जो दुनिया के सभी लोगों के लिए स्थान हो, न केवल हिंदुओं के लिए, न केवल भारतीयों के लिए, न केवल कुछ समूहों के लिए लोग; यह पूरी दुनिया के लिए होना चाहिए| जहां लोग आ सकें और हिंदू परंपरा में आधारित कुछ मूल्यों, सार्वभौमिक मूल्यों को सीख सके|
10.अक्षरवत्सलदास स्वामी ने कहा है| क‍ि हमारी पारंपरिक हिंदू परंपरा या धर्मग्रंथों या हमारी वंशावली में ऐसे कई संदर्भ है| जहां आप मंदिर निर्माण में सेवा कर सकते है| यह बहुत सराहनीय है| उन्‍होंने कहा क‍ि हमारी यह (स्वैच्छिकता) परंपरा है|