ज्ञानवापी को लेकर आदेश देने वाले जज ने बरेली में किया दंगे के मास्टर माइंड तौकीर रज़ा को तलब, जज ने cm योगी की तारीफ की, दार्शनिक, प्लेटो का दिया उदाहरण
बरेली में 14 साल पहले हुए दंगों के मामले में कोर्ट ने आईएमसी अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा को मास्टरमाइंड माना है। इससे पहले इस मामले में इंस्पेक्टर समेत 11 के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए थे। यह दंगे मार्च 2010 में हुए थे। जिसमें कोहड़ा पीर पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया था। इन दंगों में आईएमसी के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा को भी जेल जाना पड़ा था। कोर्ट ने मौलाना तौकीर रजा को 11 मार्च को कोर्ट में हाजिर होने के लिए तलब किया है।
बरेली में 2 मार्च 2010 को जुलूस – ए-मोहमदी के दौरान हुई तकरीर में जमकर बवाल हुआ था। जिसके बाद आगजनी शुरू हुई। दंगाइयों ने दुकानों के साथ कोहाड़ापीर पुलिस चौकी के हवाले कर दिया था। हिंसा में तत्कालीन सीओ आंवला पीएस पांडेय, एसओ भमोरा राजेश तिवारी, कांस्टेबल राहुल और ब्रजेश समेत काफी संख्या में लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। जिसमें पुलिस की तरफ से आईएमसी के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा समेत 300 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी। बरेली को 27 दिन तक कर्फ्यू झेलना पड़ा था।
मार्च 2010 में बरेली में दंगा भड़काने वाले मौलाना तौकीर का नाम पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया है। मुकदमे की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी कि तत्कालीन एसएसपी, डीआईजी, आईजी, कमिश्नर और डीएम ने विधिक रूप से कार्य न करके सत्ता के इशारे पर कार्य किया। अधिकारियों ने 2010 के दंगे के आरोपी और मुख्य मास्टर माइंड मौलाना तौकीर रजा खां का सहयोग किया। कोर्ट ने इसको आधार मानते हुए मौलाना तौकीर को समन जारी कर 11 मार्च को तलब किया है।
शहजाद, मोहम्मद यासीन, शानू, अनवर अली, आदिल, इमरान, रिजवान अहमद, दानिश, नाजिम, हसीन रजा, राजू, हसन, शोबी रजा, नईम, शानू, शन्नू खा, शाहरूख खा, फैजी, सरवर खा, फाजिल रजा, रिजवान, अनवर, ईशान, राशिद, शमीम खां, इमरान खां, कामरान, आदिल, वसीम, रफ़त अली, शबाब हैदर, सलीम, अलीम, इमरान, शाहीन, इफ्तेखार फरहूद आदि के खिलाफ चार्जशीट पेश कर कोर्ट में सुनवाई चली।
जज ने अपने आदेश में लिखा है
इस संबंध में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि मौलाना तौकीर रजा खाँ बरेली, बरेली की प्रमुख दरगाह आला हजरत के परिवार से संबंधित है। आला हजरत दरगाह की मुस्लिम समाज में बहुत मान्यता है। मौलाना तौकीर रजा खॉ चूँकि एक धार्मिक परिवार के धर्मगुरू की हैसियत भी रखते हैं तथा आई०एम०सी० के अध्यक्ष भी हैं इस कारण से मुस्लिम समाज पर उनका काफी प्रभाव है। यदि कोई धार्मिक व्यक्ति सत्ता की सीट पर बैठता है, तो उसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं, जैसा कि दार्शनिक, प्लेटो ने अपने ग्रन्थ रिपब्लिक में फिलॉस्फर किंग की अवधारणा में प्रतिपादित किया। प्लेटो ने कहा है कि हमारे नगर राज्यों में तब तक कष्टों का अंत नहीं होगा, जब तक कि दार्शनिक राजा न हों। न्याय राजा की प्राण वायु है। इस संबंध में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में हम न्याय शब्द का प्रयोग कानूनी अर्थ में करते हैं, जबकि प्लेटो के समय न्याय शब्द का प्रयोग धर्म के रूप में किया जाता है। अतः सत्ता का प्रमुख किसी धार्मिक व्यक्ति को होना चाहिए, क्योंकि धार्मिक व्यक्ति का जीवन भोग का नहीं वरन् त्याग एवं समर्पण का जीवन होता है। उदाहरण के रूप में वर्तमान समय में महान सिद्धपीठ गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर महंत बाबा श्री योगी आदित्य नाथ जी, जो कि वर्तमान समय में हमारे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री भी हैं, उन्होंने उपरोक्त अवधारणा को सत्य साबित किया है। किन्तु यदि किसी धार्मिक व्यक्ति के द्वारा उपरोक्त के विपरीत कार्य किया जाता है, जैसे अपने समुदाय के लोगों को भड़काना आदि, तो कानून व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है और दंगे होते हैं, जिसका उदाहरण मौलाना तौकीर रजा खॉ हैं। भारतवर्ष में दंगे होने का प्रमुख कारण यह भी है कि यहाँ राजनैतिक पार्टियों एक धर्म विशेष के तुष्टिकरण में लगी रहती हैं, जिस कारण से उस धर्म विशेष के प्रमुख लोगों का मनोबल इतना बढ़ जाता है और यह विश्वास होता है कि वह यदि दंगे आदि भी करवा देंगें, तो सत्ता संरक्षण के कारण उनका बाल भी बांका नहीं होगा।
इस संबंध में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि भारतीय न्यायिक व्यवस्था में लोगों को न्याय पाने में भी वर्षों वर्ष लगते हैं, जिसके कारण भी दंगाईयों को एक तरफ प्रोत्साहन मिलता है कि उनके द्वारा यदि दंगे कर दिये गये या करवा दिये गये, तो न्यायपालिका से सजा मिलना लगभग असम्भव है। प्रश्नगत प्रकरण भी न्यायालय के समक्ष सन् 2010 से लम्बित है। किन्तु अभी तक मुकदमे का निस्तारण नहीं हो सका है।
इस संबंध में मैं समाज में व्याप्त भय का उल्लेख करना भी उल्लेखनीय समझता हूँ। मेरे द्वारा वर्ष 2022 में चर्चित ज्ञानवापी प्रकरण का निस्तारण वाराणसी में किया जा रहा था, तत्पश्चात मुझे लगभग 32 पन्नों का धमकी भरा पत्र मुस्लिम संगठन की ओर से प्राप्त हुआ, जिसमें प्रथम सूचना रिपोर्ट जनपद वाराणसी में अंकित करवायी गयी थी। किन्तु अभी तक किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी न होने से मेरी माता जी जो कि लखनऊ में रहती हैं तथा छोटा भाई दिनेश कुमार दिवाकर, कुमार दिवाकर, जो कि शाहजहाँपुर में सिविल जज (सी०डि०) एफ०टी०सी० के पद पर कार्यरत हैं, बराबर उनको मेरी सुरक्षा की चिन्ता बनी रहती है तथा मुझे उनकी। विशेषकर मेरी माँ मेरी सुरक्षा को लेकर इतना चिन्तित रहती है कि वह रूअंधे गले से बोल नहीं पाती है।
मेरे बच्चे भी मुझसे पूछते हैं कि पापा न्यूज चैनल में दिखाया जा रहा है कि आपको जान से मार दिया जायेगा, तो मैं उन्हें समझाने के लिए कहता हूँ कि बेटा यह सब झूठ दिखलाया जा रहा है, तो बच्चे कहते हैं कि पापा स्कूल में हमारे दोस्त भी कहते हैं कि तुम्हारे पापा को जान से मार दिया जायेगा, इसलिए आप हमें बेवकूफ नहीं बना सकते हैं।
भय इतना है कि अभी कुछ समय पूर्व मौलाना तौकीर रजा खॉ के द्वारा बरेली शहर में पुनः दंगे भड़काने का प्रयास किया गया और भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध अपमानजनक बातें भी मौलाना तौकीर रजा खाँ द्वारा कही गयीं, जिसे मेरी धर्मपत्नी ने भी सुना और कहा कि जब यह व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री के बारे में अपमानजनक बातें कह सकता है, तो वह कुछ भी कर सकता है। बरेली में कुछ दिन पूर्व मौलाना तौकीर रजा खॉ द्वारा दंगा करवा दिया गया होता, यदि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में माननीय श्री योगी आदित्य नाथ जी की सरकार न होती। मेरे परिवार एवं मुझमें डर का माहौल इस तरह से व्याप्त है, जिसे शब्दों में व्यक्त किया जाना सम्भव नहीं है। परिवार के सभी लोग एक-दूसरे की सुरक्षा को लेकर चिन्तित रहते हैं। आवास से बाहर निकलने पर कई-कई बार सोचना पड़ता है।”
यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि जब से मेरे द्वारा ज्ञानवापी प्रकरण का फैसला दिया गया है, तब से एक धर्म विशेष के लोग एवं अधिकारीगणों का रवैया मेरे प्रति अजीब सा हो गया है, जैसे लगता हो कि मैने ज्ञानवापी प्रकरण में फैसला देकर कोई पाप कर दिया हो, जबकि ज्ञानवापी प्रकरण में मैने विधिक प्रावधानों के अंतर्गत दिया।
भारतवर्ष में शायद ही अभी तक कभी दंगा भड़काने वाले मास्टर माइन्ड को सजा हुयी हो। प्रश्नगत प्रकरण में जानबूझकर दंगा भड़काने वाले मुख्य मास्टर माइन्ड मौलाना तौकीर रजा खॉ का नाम विवेचना में पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया, जिससे यह प्रतीत होता है कि तात्कालीन पुलिस अधिकारीगण एवं प्रशासनिक अधिकारीगण तथा शासन स्तर के अधिकारीगण द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया गया एवं दंगा भड़काने वाले मास्टर माइन्ड मौलाना तौकीर रजा खॉ का जानबूझकर सहयोग किया गया। तात्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, बरेली, उप पुलिस महानिरीक्षक, बरेली परिक्षेत्र, बरेली, पुलिस महानिरीक्षक, बरेली जोन, बरेली तथा तात्कालीन जिलाधिकारी, बरेली तथा तात्कालीन मण्डल आयुक्त, बरेली एवं शासन स्तर के उच्चाधिकारियों द्वारा विधिक रूप से कार्य न करके सत्ता के इशारे पर कार्य किया गया और अपने अधिकारिता से परे जाकर बरेली दंगा 2010 के मुख्य मास्टर माइन्ड मौलाना तौकीर रजा खॉ का सहयोग किया गया।
इस संबंध में मैं माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित विधि व्यवस्था घनश्याम दास बनाम भारत संघ, ए0आई0आर0 1984 एस0सी0 1004 का उल्लेख करना उचित समझता हूँ। उपरोक्त विधि व्यवस्था में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि अति तकनीकी आधारों पर मूलभूत न्याय का त्याग नहीं किया जा सकता।
इस संबंध में मैं माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित विधि व्यवस्था मारिया मारग्रेरिडा सिक्योरियाय फर्नाडिज बनाम इरैस्मो जैक डी सिक्यूरिया, ए०आई०आर० 2012 एस0सी0 1727 का उल्लेख करना भी उचित समझता हूँ। उपरोक्त विधि व्यवस्था में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि न्यायाधीश प्रकरण के विचारण के दौरान केवल एक एम्पायर की तरह मूक दर्शक नहीं होता वरन् उसे सत्य की खोज करने हेतु अधिकृत किया गया है। सत्य की खोज न्यायालय के पीठासीन अधिकारी का दायित्व है। प्रकरण के विचारण एवं साक्ष्य से तथ्य की खोज करे।
इस संबंध में मैं माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित विधि व्यवस्था मोहन लाल शामजी सोनी बनाम भारत संघ, ए0आई0आर0 1991, एस0सी0 1346 का उल्लेख करना भी उचित समझता हूँ। उपरोक्त विधि व्यवस्था में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश को केवल यह देखने हेतु पीठासीन नहीं किया गया है कि वह विचारण के समय देखे कि कौन जीतता हैं या कौन पराजित होता है वरन् उसे विचारण में महत्वपूर्ण ढंग से यह देखना है कि वास्तव में सत्य क्या है? पीठासीन अधिकारी का यह कर्तव्य व दायित्व है कि वह न्याय दान करे तथा यह भी सुनिश्चित करे कि न्याय ही हो, सत्य की खोज हो। इस संबंध में मैं माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित विधि
व्यवस्था रितेश तिवारी व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, ए०आई०आर० 2010, एस0सी0 3823 का उल्लेख करना भी उचित समझता हूँ। उपरोक्त विधि व्यवस्था में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि वास्तव में प्रकरणों का निराकरण, पक्षकारों के विवाद का विनिश्चय का मुख्य उद्देश्य, पक्षकारों को न्याय दिलाना है, जिसका आधार है सत्य। सत्य की खोज ही प्रत्येक प्रकरण के विचारण का उददेश्य व न्यायालय का कर्तव्य व दायित्व है। सत्य न्यायिक कार्यवाही का गाइडिंग स्टार है। प्रत्येक प्रकरण का विचारण सत्य की खोज के लिए ही किया जाता है।
उपरोक्त माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित विधि व्यवस्थाओं का सारांश यह है कि न्यायालय को न्याय एवं सत्य की खोज करना है। न्यायाधीश को न्याय एवं सत्य की खोज के लिए न्यायिक कार्यवाही में एक्टिव रोल अदा करना है। न्यायाधीश साइलेंट एम्पायर नहीं है। वर्तमान समय में यह स्थापित विधि है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 319 का प्रयोग न्यायालय सू-मोटो कर सकती है, जैसा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने विधि व्यवस्था भोलू राम बनाम पंजाब राज्य व अन्य, (2008) 9 एस०सी०सी० 140 तथा सरोज बेन अश्विन कुमार सैग बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य, 2011 (74) ए0सी0सी0 951 (एस०सी०) में प्रतिपादित किया है।
उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों, परिस्थितियों एवं विवेचना के दृष्टिगत यह निष्कर्ष निकलता है कि इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल (आई०एम०सी०) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खॉ पुत्र स्व० रेहान रजा खॉ, निवासी मोहल्ला सौदागरान बरेली के द्वारा मुस्लिम समाज के जन समूह में यह भाषण देकर कि मैं हिन्दूओं की खून की नदियाँ बहा दूँगा और उनके घर व दुकान को तहस-नहस कर आग के हवाले कर दूँगा तथा लूटपाट करवाऊँगा, इसके बाद बरेली में दिनॉकित 02.03.2010 को दंगे भड़क उठे और इसी अनुकम में लूटपाट की गयी। पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया गया और हिन्दूओं के घर को आगे के हवाले कर दिया गया और महिलाओं से अभद्र व्यवहार किया गया। अतः न्यायहित में अभियुक्त इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल (आई०एम०सी०) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खाँ पुत्र स्व० रेहान रजा खॉ, निवासी मोहल्ला सौदागरान बरेली के विरूद्ध अंतर्गत धारा 147, 148, 149, 307, 436, 332, 336, 427, 152, 153ए, 295, 397, 398, सपठित धारा 120बी भारतीय दण्ड संहिता, 1860, धारा 7 सी०एल०एक्ट तथा धारा 3 लोक सम्पत्ति क्षति निवारण अधिनियम में विचारण हेतु तलब किये जाने का आधार पर्याप्त पाया जाता है। दण्ड प्रकिया संहिता, 1973 की धारा 319 में वर्णित शक्तियों का प्रयोग करते हुये अभियुक्त इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल (आई०एम०सी०) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खाँ पुत्र स्व० रेहान रजा खॉ, निवासी मोहल्ला सौदागरान बरेली के विरुद्ध संज्ञान अंतर्गत धारा 147, 148, 149, 307, 436, 332, 336, 427, 152, 153ए, 295, 397, 398, सपठित धारा 120बी भारतीय दण्ड संहिता, 1860, धारा 7 सी०एल०एक्ट तथा धारा 3 लोक सम्पत्ति क्षति निवारण अधिनियम लिया जाता है। अभियुक्त इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल (आई०एम०सी०) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खॉ पुत्र स्व० रेहान रजा खॉ, निवासी मोहल्ला सौदागरान बरेली जरिये समन दिनाँक 11.03.2024 को तलब हो। समन जारी हो। तात्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, बरेली, उप पुलिस महानिरीक्षक, बरेली परिक्षेत्र, बरेली, पुलिस महानिरीक्षक, बरेली जोन, बरेली तथा तात्कालीन जिलाधिकारी, बरेली तथा तात्कालीन मण्डलाआयुक्त, बरेली एवं शासन स्तर के उच्चाधिकारियों के द्वारा विधिक रूप से कार्य न कर सत्ता के इशारे पर बरेली 2010 दंगे के मुख्य मास्टर माइन्ड मौलाना तौकीर रजा का सहयोग किया गया। अतः इस आदेश की एक प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय श्री योगी आदित्य नाथ जी, लोक भवन, उत्तर प्रदेश सचिवालय, लखनऊ के समक्ष आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित की जाय।

By Anup